साहिब... मेरी हद भी तू...
मुझ में बेहद भी तू.
मुझ में बेहद भी तू.
ख्वाब तो सब मीठे देखे थे
ताज्जुब है.....
ताज्जुब है.....
आँखों का पानी खारा कैसे हो गया.!!!
स्पर्श की पराकाष्ठा है
शब्दों का मन छू जाना...
“हर शख़्स दौड़ता है यहाँ भीड़ की तरफ़,
फिर ये भी चाहता है उसे रास्ता मिले....!”
तलाश ना कर सका मुझे फिर वहाँ जाकर.......
गलत समझ कर उसने जहाँ छोड़ा था..... मुझे.....
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