Monday 30 July 2018

मृत्यु के देवता



मृत्यु के देवता ने अपने एक दूत को भेजा पृथ्वी पर। एक स्त्री मर गयी थी, उसकी आत्मा को लाना था। देवदूत आया, लेकिन चिंता में पड़ गया। क्योंकि तीन छोटी-छोटी लड़कियाँ जुड़वाँ – एक अभी भी उस मृत स्त्री के शव से लगी है। एक चीख रही है, पुकार रही है। एक रोते-रोते सो गयी है, उसके आँसू उसकी आँखों के पास सूख गए हैं – तीन छोटी जुड़वाँ बच्चियाँ और स्त्री मर गयी है, और कोई देखने वाला नहीं है। पति पहले मर चुका है। परिवार में और कोई भी नहीं है। इन तीन छोटी बच्चियों का क्या होगा?
उस देवदूत को यह खयाल आ गया, तो वह खाली हाथ वापस लौट गया। उसने जाकर अपने प्रधान को कहा - मैं न ला सका, मुझे क्षमा करें, लेकिन आपको स्थिति का पता ही नहीं है। तीन जुड़वाँ बच्चियाँ हैं–छोटी-छोटी, दूध पीती। एक अभी भी मृत मां से लगी है, एक रोते-रोते सो गयी है, दूसरी अभी चीख-पुकार रही है। हृदय मेरा ला न सका। क्या यह नहीं हो सकता कि इस स्त्री को कुछ दिन और जीवन के दे दिए जाएं? कम से कम लड़कियां थोड़ी बड़ी हो जाएं। और कोई देखने वाला नहीं है।
मृत्यु के देवता ने कहा - तो तू फिर समझदार हो गया; उससे ज्यादा, जिसकी इच्छा से मृत्यु होती है, जिसकी इच्छा से जीवन होता है! तो तूने पहला पाप कर दिया, और इसकी सज़ा मिलेगी। और सज़ा यह है कि तुझे पृथ्वी पर चले जाना पड़ेगा। और जब तक तू तीन बार न हँस लेगा अपनी मूर्खता पर, तब तक वापस न आ सकेगा।


*इसे थोड़ा समझना। तीन बार न हँस लेगा अपनी मूर्खता पर – क्योंकि दूसरे की मूर्खता पर तो अहंकार हँसता है। जब हम अपनी मूर्खता पर हँसते हैं तब अहंकार टूटता है।*
देवदूत को लगा नहीं। वह राज़ी हो गया दंड भोगने को, लेकिन फिर भी उसे लगा कि सही तो मैं ही हूँ। और हँसने का मौका कैसे आएगा?
उसे जमीन पर फेंक दिया गया। सर्दियों के दिन करीब आ रहे थे। एक मोची बच्चों के लिए कोट और कंबल खरीदने शहर गया था। जब वह शहर जा रहा था तो उसने राह के किनारे एक नंगे आदमी को पड़े हुए, ठिठुरते हुए देखा। यह नंगा आदमी वही देवदूत है जो पृथ्वी पर फेंक दिया गया था। उसको दया आ गयी। और बजाय अपने बच्चों के लिए कपड़े खरीदने के, उसने इस आदमी के लिए कंबल और कपड़े खरीद लिए। इस आदमी को कुछ खाने-पीने को भी न था, घर भी न था, छप्पर भी न था जहाँ रुक सके।
मोची ने कहा - अब तुम मेरे साथ ही आ जाओ। लेकिन अगर मेरी पत्नी नाराज हो – जो कि वह निश्चित होगी, क्योंकि बच्चों के लिए कपड़े खरीदने लाया था, वह पैसे तो खर्च हो गए – वह अगर नाराज हो, चिल्लाए, तो तुम परेशान मत होना। थोड़े दिन में सब ठीक हो जाएगा।
उस देवदूत को लेकर मोची घर लौटा। न तो मोची को पता है कि देवदूत घर में आ रहा है, न पत्नी को पता है। जैसे ही देवदूत को लेकर मोची घर में पहुँचा, पत्नी एकदम पागल हो गयी। बहुत नाराज हुई, बहुत चीखी-चिल्लायी।
और देवदूत पहली दफा हँसा। मोची ने उससे कहा - हँसते हो, बात क्या है?
उसने कहा - मैं जब तीन बार हँस लूँगा तब बता दूँगा।


देवदूत हँसा पहली बार, क्योंकि उसने देखा कि इस पत्नी को पता ही नहीं है कि मोची देवदूत को घर में ले आया है, जिसके आते ही घर में हज़ारों खुशियाँ आ जाएंगी।
*लेकिन आदमी देख ही कितनी दूर तक सकता है!* पत्नी तो इतना ही देख पा रही है कि एक कंबल और बच्चों के कपड़े नहीं बचे। *जो खो गया है वह देख पा रही है, जो मिला है उसका उसे अंदाज़ा ही नहीं है* – मुफ्त! घर में देवदूत आ गया है। जिसके आते ही हज़ारों खुशियों के द्वार खुल जाएंगे। तो देवदूत हँसा अपनी मूर्खता पर – क्योंकि उसे लगा यह पत्नी भी नहीं देख पा रही है कि क्या घट रहा है!
जल्दी ही, क्योंकि वह देवदूत था, सात दिन में ही उसने मोची का सब काम सीख लिया। और उसके जूते इतने प्रसिद्ध हो गए कि मोची महीनों के भीतर धनी होने लगा। आधा साल होते-होते तो उसकी ख्याति सारे लोक में पहुँच गयी कि उस जैसा जूते बनाने वाला कोई भी नहीं, क्योंकि वह जूते देवदूत बनाता था। सम्राटों के जूते वहाँ बनने लगे। धन अपरंपार बरसने लगा।
एक दिन सम्राट का आदमी आया। और उसने कहा - यह चमड़ा बहुत कीमती है, आसानी से मिलता नहीं, कोई भूल-चूक नहीं करना। जूते ठीक इस तरह के बनने हैं। और ध्यान रखना जूते बनाने हैं, स्लीपर नहीं!!
क्योंकि रूस में जब कोई आदमी मर जाता है तब उसको स्लीपर पहनाकर मरघट तक ले जाते हैं।
मोची ने भी देवदूत को कहा - स्लीपर मत बना देना। जूते बनाने हैं, स्पष्ट आज्ञा है, और चमड़ा इतना ही है। अगर गड़बड़ हो गयी तो हम मुसीबत में फँसेंगे!
लेकिन फिर भी देवदूत ने स्लीपर ही बनाए। जब मोची ने देखे कि स्लीपर बने हैं तो वह क्रोध से आगबबूला हो गया। वह लकड़ी उठाकर उसको मारने को तैयार हो गया - तू हमारी फाँसी लगवा देगा! तुझे बार-बार कहा था कि स्लीपर बनाने ही नहीं हैं, फिर स्लीपर किसलिए?
देवदूत फिर खिलखिला कर हँसा। तभी आदमी सम्राट के घर से भागा हुआ आया। उसने कहा - जूते मत बनाना, स्लीपर बनाना। क्योंकि सम्राट की मृत्यु हो गयी है।


*भविष्य अज्ञात है। सिवाय उसके और किसी को ज्ञात नहीं। और आदमी तो अतीत के आधार पर निर्णय लेता है।* सम्राट जिंदा था तो जूते चाहिए थे, मर गया तो स्लीपर चाहिए। तब वह मोची उसके पैर पकड़कर माफी माँगने लगा - मुझे माफ कर दे, मैंने तुझे मारा।
पर उसने कहा - कोई हर्ज नहीं। मैं अपना दंड भोग रहा हूं।
लेकिन वह हँसा आज दुबारा। मोची ने फिर पूछा - हँसी का कारण?
उसने कहा - जब मैं तीन बार हँस लूँगा, तब बता दूँगा।


*दोबारा हँसा इसलिए कि भविष्य हमें ज्ञात नहीं है। इसलिए हम आकांक्षाएं करते हैं जो कि व्यर्थ हैं। हम अभीप्साएं करते हैं जो कि कभी पूरी न होंगी। हम माँगते हैं जो कभी नहीं घटेगा क्योंकि कुछ और ही घटना तय है। हमसे बिना पूछे हमारी नियति घूम रही है। और हम व्यर्थ ही बीच में शोरगुल मचाते हैं। चाहिए स्लीपर और हम जूते बनवाते हैं। मरने का वक्त करीब आ रहा है और जिंदगी का हम आयोजन करते हैं।*
तो देवदूत को लगा कि वे बच्चियाँ! मुझे क्या पता था कि भविष्य उनका क्या होने वाला है? मैं नाहक बीच में आया।
और तीसरी घटना घटी कि एक दिन तीन लड़कियाँ आयीं, जवान। उन तीनों की शादी हो रही थी। और उन तीनों ने जूतों के आर्डर दिए कि उनके लिए जूते बनाए जाएं। एक बूढ़ी महिला उनके साथ आयी थी जो बड़ी धनी थी। देवदूत पहचान गया, ये वे ही तीन लड़कियाँ हैं, जिनको वह मृत माँ के पास छोड़ गया था और जिनकी वजह से वह दंड भोग रहा है। वे सब स्वस्थ हैं, सुंदर हैं।
उसने पूछा - क्या हुआ? यह बूढ़ी औरत कौन है?
उस बूढ़ी औरत ने कहा - ये मेरी पड़ोसिन की लड़कियाँ हैं। गरीब औरत थी, उसके शरीर में दूध भी न था। उसके पास पैसे-लत्ते भी नहीं थे। और तीन बच्चे जुड़वाँ। वह इन्हीं को दूध पिलाते-पिलाते मर गयी। लेकिन मुझे दया आ गयी, मेरे कोई बच्चे नहीं हैं, और मैंने इन तीनों बच्चियों को पाल लिया।
अगर माँ ज़िंदा रहती तो ये तीनों बच्चियाँ गरीबी, भूख और दीनता और दरिद्रता में बड़ी होतीं। माँ मर गयी, इसलिए ये बच्चियाँ तीनों बहुत बड़े धन-वैभव में, संपदा में पलीं। और अब उस बूढ़ी की सारी संपदा की ये ही तीन मालिक हैं। और इनका सम्राट के परिवार में विवाह हो रहा है।


देवदूत तीसरी बार हँसा और मोची को उसने बुलाकर कहा - ये तीन कारण हैं। भूल मेरी थी। नियति बड़ी है। और हम उतना ही देख पाते हैं, जितना देख पाते हैं। जो नहीं देख पाते, बहुत विस्तार है उसका। और हम जो देख पाते हैं उससे हम कोई अंदाज़ नहीं लगा सकते, जो होने वाला है, जो होगा। मैं अपनी मूर्खता पर तीन बार हँस लिया हूँ। अब मेरा दंड पूरा हो गया और अब मैं जाता हूँ।


*अगर हम अपने को बीच में लाना बंद कर दें, तो हमें मार्गों का मार्ग मिल गया। फिर असंख्य मार्गों की चिंता न करनी पड़ेगी। छोड़ दें उस पर। वह जो करवा रहा है, जो उसने अब तक करवाया है, उसके लिए धन्यवाद। जो अभी करवा रहा है, उसके लिए धन्यवाद। जो वह कल करवाएगा, उसके लिए धन्यवाद। हम बिना लिखा चेक धन्यवाद का उसे दे दें। वह जो भी हो, हमारे धन्यवाद में कोई फर्क न पड़ेगा। अच्छा लगे, बुरा लगे, लोग भला कहें, बुरा कहें, लोगों को दिखायी पड़े दुर्भाग्य या सौभाग्य, यह सब चिंता हमें नहीं करनी चाहिए।*

मेहनत करें, अच्छे कर्म करें


एक बुजुर्ग औरत मर गई, यमराज लेने आये।
औरत ने यमराज से पूछा, आप मुझे स्वर्ग ले जायेगें या नरक।
यमराज बोले दोनों में से कहीं नहीं।
तुमनें इस जन्म में बहुत ही अच्छे कर्म किये हैं, इसलिये मैं तुम्हें सिधे प्रभु के धाम ले जा रहा हूं।
बुजुर्ग औरत खुश हो गई, बोली धन्यवाद, पर मेरी आपसे एक विनती है।
मैनें यहां धरती पर सबसे बहुत स्वर्ग - नरक के बारे में सुना है मैं एक बार इन दोनों जगाहो को देखना चाहती हूं।
यमराज बोले तुम्हारे कर्म अच्छे हैं, इसलिये मैं तुम्हारी ये इच्छा पूरी करता हूं।
चलो हम स्वर्ग और नरक के रसते से होते हुए प्रभु के धाम चलेगें।
दोनों चल पडें, सबसे पहले नरक आया।
नरक में बुजुर्ग औरत ने जो़र जो़र से लोगो के रोने कि आवाज़ सुनी।
वहां नरक में सभी लोग दुबले पतले और बीमार दिखाई दे रहे थे।
औरत ने एक आदमी से पूछा यहां आप सब लोगों कि ऐसी हालत क्यों है।
आदमी बोला तो और कैसी हालत होगी, मरने के बाद जबसे यहां आये हैं, हमने एक दिन भी खाना नहीं खाया।
भूख से हमारी आतमायें तड़प रही हैं
बुजुर्ग औरत कि नज़र एक वीशाल पतिले पर पडी़, जो कि लोगों के कद से करीब 300 फूट ऊंचा होगा, उस पतिले के ऊपर एक वीशाल चम्मच लटका हुआ था।
उस पतिले में से बहुत ही शानदार खुशबु आ रही थी।
बुजुर्ग औरत ने उस आदमी से पूछा इस पतिले में कया है।
आदमी मायूस होकर बोला ये पतिला बहुत ही स्वादीशट खीर से हर समय भरा रहता है।
बुजुर्ग औरत ने हैरानी से पूछा, इसमें खीर है
तो आप लोग पेट भरके ये खीर खाते क्यों नहीं, भूख से क्यों तड़प रहें हैं।
आदमी रो रो कर बोलने लगा, कैसे खायें
ये पतिला 300 फीट ऊंचा है हममें से कोई भी उस पतिले तक नहीं पहुँच पाता।
बुजुर्ग औरत को उन पर तरस आ गया
सोचने लगी बेचारे, खीर का पतिला होते हुए भी भूख से बेहाल हैं।
शायद ईश्वर नें इन्हें ये ही दंड दिया होगा
यमराज बुजुर्ग औरत से बोले चलो हमें देर हो रही है।
दोनों चल पडे़, कुछ दूर चलने पर स्वरग आया।
वहां पर बुजुर्ग औरत को सबकी हंसने,खिलखिलाने कि आवाज़ सुनाई दी।
सब लोग बहुत खुश दिखाई दे रहे थे।
उनको खुश देखकर बुजुर्ग औरत भी बहुत खुश हो गई।
पर वहां स्वरग में भी बुजुर्ग औरत कि नज़र वैसे ही 300 फूट उचें पतिले पर पडी़ जैसा नरक में था, उसके ऊपर भी वैसा ही चम्मच लटका हुआ था।
बुजुर्ग औरत ने वहां लोगो से पूछा इस पतिले में कया है।
स्वर्ग के लोग बोले के इसमें बहुत टेस्टी खीर है।
बुजुर्ग औरत हैरान हो गई
उनसे बोली पर ये पतिला तो 300 फीट ऊंचा है
आप लोग तो इस तक पहुँच ही नहीं पाते होगें
उस हिसाब से तो आप लोगों को खाना मिलता ही नहीं होगा, आप लोग भूख से बेहाल होगें
पर मुझे तो आप सभी इतने खुश लग रहे हो, ऐसे कैसे
लोग बोले हम तो सभी लोग इस पतिले में से पेट भर के खीर खाते हैं
औरत बोली पर कैसे,पतिला तो बहुत ऊंचा है।
लोग बोले तो क्या हो गया पतिला ऊंचा है तो
यहां पर कितने सारे पेड़ हैं, ईश्वर ने ये पेड़ पौधे, नदी, झरने हम मनुष्यों के उपयोग के लिये तो बनाईं हैं
हमनें इन पेडो़ कि लकडी़ ली, उसको काटा, फिर लकड़ीयों के तुकडो़ को जोड़ के वीशाल सिढी़ का निर्माण किया
उस लकडी़ की सिढी़ के सहारे हम पतिले तक पहुंचते हैं
और सब मिलकर खीर का आंनद लेते हैं
बुजुर्ग औरत यमराज कि तरफ देखने लगी
यमराज मुसकाये बोले
*ईशवर ने स्वर्ग और नरक मनुष्यों के हाथों में ही सौंप रखा है,चाहें तो अपने लिये नरक बना लें, चाहे तो अपने लिये स्वरग, ईशवर ने सबको एक समान हालातो में डाला हैं*
*उसके लिए उसके सभी बच्चें एक समान हैं, वो किसी से भेदभाव नहीं करता*
*वहां नरक में भी पेेड़ पौधे सब थे, पर वो लोग खुद ही आलसी हैं, उन्हें खीर हाथ में चाहीये,वो कोई कर्म नहीं करना चाहते, कोई मेहनत नहीं करना चाहते, इसलिये भूख से बेहाल हैं*
*कयोकिं ये ही तो ईश्वर कि बनाई इस दुनिया का नियम है,जो कर्म करेगा, मेहनत करेगा, उसी को मीठा फल खाने को मिलेगा*

मेहनत करें, अच्छे कर्म करें और अपने जीवन को स्वरग बनाएं।

तेरे इश्क का सुरूर था

 तेरे इश्क का सुरूर था जो खुद को बर्बाद कर दिया,
वरना एक वक़्त था जब दुनिया मेरी भी रंगीन थी.

 बहुत मुश्किल है, सभी को खुश रखना,
चिराग जलाते ही, अंधेरे रूठ जाते हैं !!
"The possibilities are numerous once we decide to act and not react." - George Bernard Shaw
उन्हें ये खौफ की हर बात मुझसे कह डाली,
मुझे ये वहम की कोई ख़ास बात बाकी है
आगाह अपनी मौत से कोई बशर(आदमी) नहीं,
सामान सौ बरस के हैं कल की ख़बर नहीं
वो आराम से हैं....जो पत्थर के हैं , मुसीबत
तो.....एहसास वालों की है...
 नजरों से दूर हो कर भी, यूं तेरा रूबरू रहना,
किसी के पास रहने का सलीका हो तो तुम सा हो
*जो न देते थे जवाब , उनके सलाम आने लगे...*
*वक़्त बदला तो, मेरे नीम पे आम आने लगे...*
You can deal with your enemies later, first try and treat your friends a little better.
 कुछ अंधेरे भी ज़रूरी हैं यहाँ...
रौशनी कैसे भला खुद पर इतराएगी...!!
चाहिए क्या तुम्हें तोहफ़े में बता दो वर्ना
हम तो बाज़ार के बाज़ार उठा लाएँगे
 रास्ते जो भी चमक-दार नज़र आते हैं,
सब तेरी ओढ़नी के तार नज़र आते हैं
 जो बातें अधूरी हैं वो अधूरी ही सही....
बस मुस्कुराते रहो जिन्दगी इतनी बुरी भी नहीं ....
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महान कवि नीरज:

 महान कवि नीरज:
अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए।
जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए।
जिसकी ख़ुशबू से महक जाय पड़ोसी का भी घर
फूल इस क़िस्म का हर सिम्त खिलाया जाए।
मेरे दुख-दर्द का तुझ पर हो असर कुछ ऐसा
मैं रहूँ भूखा तो तुझसे भी न खाया जाए।
गोपालदास "नीरज"

*अपनी "आदतों" के अनुसार चलने में इतनी "गलतियां" नहीं होती...*
*जितना "दुनिया" का ख्याल और "लिहाज़" रखकर चलने में होती है....*

Friday 20 July 2018

तेरी जरूरत हुम् थे,:


अब तो ख़ुद अपनी ज़रूरत भी नहीं है हम को,
वो भी दिन थे कि कभी तेरी ज़रूरत हम थे


“Good decisions come from experience,and experience comes from bad decisions.”


उस ने हमारे ज़ख़्म का कुछ यूँ किया इलाज
मरहम भी गर लगाया तो काँटों की नोक से


कुछ इस अदा से कि कोई चराग़ भी न बुझे
हवा की तरह गुज़र जाना चाहते हैं हम

मैं तमाम दिन का थका हुआ तू तमाम शब का जगा हुआ,

ज़रा ठहर जा इसी मोड़ पर तेरे साथ शाम गुज़ार लूँ


तुझे कौन जानता था मेरी दोस्ती से पहले
तेरा हुस्न कुछ नहीं था मेरी शाइरी से पहले


वही टूटी हुई कश्ती है अपनी
वही ठहरा हुआ दरिया हमारा
किसी जानिब नहीं खुलते दरीचे
कहीं जाता नहीं रस्ता हमारा


रह-ए-हयात में लाखों थे हम-सफ़र
किसी को याद रखा और किसी को भूल गए


क्या कहूँ उस से कि जो बात समझता ही नहीं
वो तो मिलने को मुलाक़ात समझता ही नहीं


हटाओ आइना उम्मीद-वार हम भी हैं
तुम्हारे देखने वालों में यार हम भी हैं


चुप-चाप सुलगता है दिया तुम भी तो देखो
किस दर्द को कहते हैं वफ़ा तुम भी तो देखो


चले गए तो पुकारेगी हर सदा हम को
न जाने कितनी ज़बानों से हम बयाँ होंगे


तुम्हारी याद में जीने की आरज़ू है अभी
कुछ अपना हाल सँभालूँ अगर इजाज़त हो


हमें तो ख़ैर कोई दूसरा अच्छा नहीं लगता
उन्हें ख़ुद भी कोई अपने सिवा अच्छा नहीं लगता


बरसों की रस्मो-राह थी, इक रोज़ उसने तोड़ दी,
होशयार हम भी कम न थे, उम्मीद हम ने छोड़ दी


कई जवाबों से अच्छी है ख़ामुशी मेरी
न जाने कितने सवालों की आबरू रक्खे


आँख से आँख मिलाता है कोई
दिल को खींचे लिए जाता है कोई

यूँ तो ज़िंदगी इतनी बुरी भी ना थी...
बस हम ही इसे आसां समझने की भूल कर बैठे....

खेल ज़िंदगी के तुम खेलते रहो यारो
हार जीत कोई भी आख़िरी नहीं होती

जाने किस बात से दुखा है बहुत
दिल कई रोज़ से ख़फ़ा है बहुत

हम तुम में कल दूरी भी हो सकती है
वज्ह कोई मजबूरी भी हो सकती है

न पाने से किसी के है न कुछ खोने से मतलब है
ये दुनिया है इसे तो कुछ न कुछ होने से मतलब है

किरदार देखना है तो सूरत न देखिए
मिलता नहीं ज़मीं का पता आसमान से

लफ़्ज़-ओ-मंज़र में मानी को टटोला न करो
होश वाले हो तो हर बात को समझा न करो

Tuesday 3 July 2018

मुस्कुराना:

ठहाके छोड़ आये हैं अपने कच्चे घरों मे हम,
रिवाज़ इन पक्के मकानों में बस मुस्कुराने का है।
 मंज़िलों की बातें तो ख़्वाब जैसी बातें हैं
उम्र बीत जाती है रास्ता बनाने में

हर मुलाक़ात पे सीने से लगाने वाले
कितने प्यारे हैं मुझे छोड़ के जाने वाले
इक बार उस ने मुझ को देखा था मुस्कुरा कर
इतनी सी है हक़ीक़त बाक़ी कहानियाँ हैं
वो दूर था तो बहुत हसरतें थीं पाने की
वो मिल गया है तो जी चाहता है खोने को
पी लिया करते हैं जीने की तमन्ना में कभी,
डगमगाना भी जरूरी है संभलने के लिए।
रात चाँद और मैं तीनो ही बंजारे हैं 
तेरी नाम पलकों में शाम किया करते हैं
उसकी गली से उठ कर मैं आन पड़ा था अपने घर,
एक गली की बात थी और गली गली गयी...
शिकायत और तो कुछ भी नहीं इन आँखों से
ज़रा सी बात पे पानी बहुत बरसता है
बहुत भीड़ थी उनके दिल में,
ख़ुद ना निकलते तो निकाल दिए जाते
दुनिया की सबसे बेहतर दवाई है - "जिम्मेदारी"
एक बार पी लीजिए जनाब ,
जिन्दगी भर थकने नही देती!
सोने की जगह रोज़ बदलता हूँ मैं लेकिन
इक ख़्वाब किसी तरह बदलता ही नहीं है
उस शहर में कितने चेहरे थे कुछ याद नहीं सब भूल गए
इक शख़्स किताबों जैसा था वो शख़्स ज़बानी याद हुआ
ना ढूँढ मेरा किरदार दुनिया की भीड़ में,
वफ़ादार तो हमेशा तनहा ही मिलते हैं
सारे फलदार दरख़्तों पे तसर्रुफ़ उसका,
जिसमे पत्ते भी नहीं है वह शजर मेरा है
दुनिया बस इस से और ज़्यादा नहीं है कुछ
कुछ रोज़ हैं गुज़ारने और कुछ गुज़र गए
बरसात  का बादल तो दीवाना  है  क्या  जाने
किस राह से बचना है किस छत को भिगोना है
निदा फ़ाज़ली
"It is good to have an end to journey toward; but it is the journey that matters, in the end."
- Ursula Le Guin
जो दुःख में जीने को राज़ी है, उससे सुख कौन छीन सकता है.
~ #Osho
हम भी ख़ुद को तबाह कर लेते
तुम इधर भी निगाह कर लेते

हर सुब्ह चहचहाती है चिड़िया मुंडेर पर
वीरान घर में आस की कोई किरन तो है
 अब कोई आए चला जाए मैं ख़ुश रहता हूँ
अब किसी शख़्स की आदत नहीं होती मुझ को
ख़्वाहिशों के दाम
ऊँचे हो सकते हैं..
मगर ख़ुशियाँ
कभी महँगी नहीं होती..
सिर्फ़ मौसम के बदलने ही पे मौक़ूफ़ नहीं
दर्द भी सूरत-ए-हालात बता देता है
झुक कर सलाम करने में क्या हर्ज है मगर
सर इतना मत झुकाओ कि दस्तार गिर पड़े
कोई ये लाख कहे मेरे बनाने से मिला
हर नया रंग ज़माने को पुराने से मिला

अगर बे ऐब चाहते हो तो फ़रिश्तों से रिश्ता कर लो,
मैं इंसान हूँ और खताएँ मेरी विरासत है...
पत्थर तो हज़ारों ने मारे थे मुझे लेकिन
जो दिल पे लगा आ कर इक दोस्त ने मारा है
मैं ने भी देखने की हद कर दी
वो भी तस्वीर से निकल आया
बेताबियाँ समेट के सारे जहान की
जब कुछ न बन सका तो मेरा दिल बना दिया

डर हमको भी लगता है रस्ते के सन्नाटे से लेकिन एक सफ़र पर ऐ दिल अब जाना तो होगा

 [8:11 AM, 8/24/2023] Bansi Lal: डर हमको भी लगता है रस्ते के सन्नाटे से लेकिन एक सफ़र पर ऐ दिल अब जाना तो होगा [8:22 AM, 8/24/2023] Bansi La...