दोनों तरफ़ की ख़ामोशी ने बात को मुक़म्मल कर दिया
कुछ अहम् ले गया कुछ वहम खा गया
अनदेखे धागों से...यूँ बाँध गया कोई
वो साथ भी नहीं... और हम आजाद भी नहीं
अनदेखे धागों से...यूँ बाँध गया कोई
वो साथ भी नहीं... और हम आजाद भी नहीं
सच कहना तो मुश्किल नहीं है लेकिन
सुनने को हौसला मगर, कमाल चाहिए
अपनी ही आवाज़ को बे-शक कान में रखना,
लेकिन शहर की ख़ामोशी भी ध्यान में रखना
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