Saturday 30 April 2016

न जानना बुरा है:

लाश को हाथ लगाता है तो नहाता हैं
बेजुबान जीव को मार के खाता हैं

मंदिर-मस्ज़िद भी गजब की जगह है
जहां गरीब बाहर और अमीर अंदर "भीख" मांगता है

वजूद अपना है और आप तय करेंगे हम
कहाँ पे होना है हम को कहाँ नहीं होना

नहीँ जानना बुरा है लेकिन जानने की इच्छा न होना और  भी बुरा है।

Friday 29 April 2016

Let's have to inspire from:

Are we earning to pay builders and interior designers, caterers and decorators?

Whom do we want to impress with our highly inflated house properties & fat weddings?

Do you remember for more than two days what you ate at someone's marriage?

Why are we working like dogs in our prime years of life?

How many generations do we want to feed?

Most of us have two kids. Many have a single kid.

How much is the "need" and how much do we actually "want"??
Think about it.

Would our next generation be incapable to earn, that we save so much for them!?!

Can not we spare one and a half days a week for friends, family and self??

Do you spend even 5% of your monthly income for your self enjoyment?
Usually...No.

Why can't we enjoy simultaneously while we earn? 

Spare time to enjoy before you have slipped discs and cholesterol blocks in your heart!!!

We don't own properties, we just have temporary name on documents.

GOD laughs sarcastically, when someone says,
"I am the owner of this land"!!  

Do not judge a person only by the length of his car.

Many of our science and maths teachers were great personalities riding on scooters!!  

It is not bad to be rich, but it is very unfair, to be only rich.

Let's get a LIFE, before life gets us, instead....

One day, all of us will get  separated  from each other; we will miss our conversations of everything & nothing; the dreams that we had.

Days will pass by, months, years, until this contact becomes rare... One day our children will see our pictures and ask 'Who are these people?' And we will smile with invisible tears  because a heart is touched with a strong word and you will say:

'IT WAS THEM THAT I HAD THE BEST DAYS OF MY LIFE WITH'.

जीवन में संघर्ष आवश्यक है:

जीवन में संघर्ष आवश्यक है

एक बार एक व्यक्ति को अपने बगीचे में टहलते हुए किसी टहनी से लटकता हुआ एक तितली का कोकून दिखाई दिया, अब प्रतिदिन वह व्यक्ति उसे देखने लगा , और एक दिन उसने गौर किया कि उस कोकून में एक छोटा सा छेद बन गया है| उस दिन वो वहीं बैठ गया और घंटो उसे देखता रहा| उसने देखा की तितली उस खोल से बाहर निकलने की बहुत कोशिश कर रही है , पर बहुत देर तक प्रयास करने के
बाद भी वो उस छेद से नहीं निकल पायी और फिर वो बिलकुल शांत हो गयी मानो उसने हार मान ली हो|
   इसलिए उस आदमी ने निश्चय किया कि वो उस तितली की मदद करेगा, उसने एक कैंची उठायी और कोकून के छेद को इतना बड़ा कर दिया की वो तितली आसानी से बाहर निकल सके और यही हुआ,
वह तितली बिना किसी और संघर्ष के आसानी से बाहर निकल आई, पर उसका शरीर सूजा हुआ था,और पंख सूखे हुए थे|
वह व्यक्ति तितली को यह सोच कर देखता रहा कि वो किसी भी समय अपने पंख फैला कर उड़ने लगेगी, पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ|  इसके उलट बेचारी तितली कभी उड़ ही नहीं पाई और उसे अपनी बाकी की ज़िन्दगी इधर-उधर घिसटते हुए बितानी पड़ी|
वो आदमी अपनी दया और जल्दबाजी में ये नहीं समझ पाया कि असल में कोकून से निकलने की प्रक्रिया को प्रकृति ने इतना कठिन इसलिए बनाया है ताकि ऐसा करने से तितली के शरीर में मौजूद तरल उसके पंखों में पहुच सके और वो छेद से बाहर निकलते ही उड़ सके|
वास्तव में कभी-कभी हमारे जीवन में संघर्ष ही वो चीज होती जिसकी हमें सचमुच आवश्यकता होती है. यदि हम बिना किसी संघर्ष के सब कुछ पाने लगे तो हम भी एक अपंग के सामान हो जायेंगे| बिना परिश्रम और संघर्ष के हम कभी उतने मजबूत नहीं बन सकते जितना हमारी क्षमता है, इसलिए जीवन में आने वाले कठिन पलों को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखिये वो आपको कुछ ऐसा सीखा जायंगे जो आपकी ज़िन्दगी की उड़ान को संभव बना पायेंगे|

न जानें कितने चरागों को मिल गई शोहरत:

न जाने कितने चरागौ को मिल गई शोहरत,
एक आफताब के बे वक्त डूब जाने से.....

मुन्सिफ़ हो अगर तुम तो कब इंसाफ़ करोगे
मुजरिम हैं अगर हम तो सज़ा क्यूँ नहीं देते

हज़ार कारवाँ यूँ तो हैं मेरे साथ मगर
जो मेरे नाम है वो क़ाफ़िला कब आएगा

मैं आखिर कौन सा मौसम तुम्हारे नाम कर देता,
यहाँ हर इक मौसम को गुजर जाने की जल्दी थी ।

कहाँ आके रुकने थे रास्ते कहाँ मोड़ था उसे भूल जा
वो जो मिल गया उसे याद रख जो नहीं मिला उसे भूल जा

Wednesday 27 April 2016

मुदत से ज़हर पिने की आदत है:

तेरे प्यार की हिफाज़त कुछ इस तरह से की हमने....
जब किसी ने प्यार से देखा तो नज़रे झुका ली हमने....

मुद्दत से जहर पीने की आदत है जमाने वालो..
अब कोई और जतन करो कि मैं जिन्दा हूं अभी...

किस तरह यकीन दिलाऊँ तुम्हे, अपनी वफाओं का....
कोशिश सारी नाकाम हुई, बस जान ही देना बाकी है !!

जिन्दगी की इस कशमकश में वैसे तो मैं भी बहुत ब्यस्त हूं ,
लेकिन..,
वक्त का बहाना बना कर अपनों को भूल जाना.......
मुझे आज भी नहीं आता...

Tuesday 26 April 2016

गगन की सीमा कहाँ तक है:

जब किसी कार्य में रुचि और उसे करने के हुनर का संगम हो, तो उत्कृष्टता स्वाभाविक है।

मैं ने ये कब कहा कि मेरे हक में हो जवाब, 
लेकिन ख़ामोश क्यूँ है तू कोई फैसला तो दे!

हौसला भरके नन्हे परों में उड़ जाते हैं परिंदे
गगन की सीमा कहां है ये कब सोचते हैं

कभी कभी कुछ लम्हें , चुराकर रख लेती है किस्मत , ज़िंदगी से
फिर लौटाती है उन्हें सूद समेत , वक्त आने पर , ख़ुशियों की सूरत में

बून्द बून्द बरसे और प्यास ही मर जाए:

जिन्हें मयस्सर है ज़्यादा वो इतना भी ना बहाएँ
कि कोई बूँद बूँद तरसे और प्यासा ही मर जाए

Leadership is the art of getting someone else to do something you want to done because he wants  to do it.

आप के न की लालसा आपके साहस जूटा पाने की प्रतीक्षा कर रही है।

मुमकिन नहीं यहाँ हर नज़र में बेगुनाह रहना....
बस मैं कोशिश करता हूँ खुद की नज़रो में बेदाग रहूँ....

और कितना खुद को बदलूं ए ज़िन्दगी,
जीने के लिए;
अरे थोड़ा- सा मुझमें... मुझको तो बाक़ी रहने दे।

जब किसी कार्य में रुचि और उसे करने के हुनर का संगम हो, तो उत्कृष्टता स्वाभाविक है।

बून्द बून्द बरसे और प्यास ही मर जाए:

जिन्हें मयस्सर है ज़्यादा वो इतना भी ना बहाएँ
कि कोई बूँद बूँद तरसे और प्यासा ही मर जाए

Leadership is the art of getting someone else to do something you want to done because he wants  to do it.

आप के न की लालसा आपके साहस जूटा पाने की प्रतीक्षा कर रही है।

मुमकिन नहीं यहाँ हर नज़र में बेगुनाह रहना....
बस मैं कोशिश करता हूँ खुद की नज़रो में बेदाग रहूँ....

और कितना खुद को बदलूं ए ज़िन्दगी,
जीने के लिए;
अरे थोड़ा- सा मुझमें... मुझको तो बाक़ी रहने दे।

जब किसी कार्य में रुचि और उसे करने के हुनर का संगम हो, तो उत्कृष्टता स्वाभाविक है।

इतना फर्क है आम और खास में:

तू खूबियाँ मुझ में तलाश ना कर... तू भी शामिल है मेरी कमियों में

हमें तो नहीं, पर उसे जरुर हमारी वाह-वाही की दरकार है
बस, इत्ता-सा फर्क है , आम और ख़ास में !

चरागों को ही हिफाज़त की ज़रुरत होती है,
सुरज को भला क्या सायबान धरना?? हमारी आँखे चुँधियाँ जाती है...

हमें तो नहीं, पर उसे जरुर हमारी वाह-वाही की दरकार है
बस, इत्ता-सा फर्क है , आम और ख़ास में !

Tuesday 19 April 2016

अपने हिस्से का दीया खुद ही जलाएं:

ख्वाहिश से नहीं गिरते हैं फल झोली में।
वक़्त की साख को मेरे दोस्त हिलाना होगा।।
कुछ नहीं होगा अंधेरों को बुरा कहने से।
अपने हिस्से क़ा दीया ख़ुद ही जलाना होगा।।

आसमाँ मेरी नज़र में कूबा—ए—तारीक है
गर न देखूँ तुझ कूँ अय चश्म—ए—चराग़—ए—ज़िन्दगी

करें किसका एतबार यहाँ सब अदाकार ही तो हैं,
और गिला भी किससे करें सब अपने यार ही तो हैं!

उस्ताद वह नहीं जो आरम्भ करता है, बल्कि वह है जो पूर्ण करता है।

Sunday 17 April 2016

तुम चले ज़मी चले आसमा चले:

There is more pleasure in loving than in being beloved.

#Thomas Fuller

“In business as in life, you don’t get what you deserve, you get what you negotiate.”

#Chester L Karrass

सजी हुई हैं सितारों से मयकदे की फिजा
कि रात तेरे तस्सउर में ढल के आई है

हम करें बात दलीलों से तो रद्द होती है
उस के होंटों की ख़मोशी भी सनद होती है

वक़्त सीखा देता है इंसान को जिंदगी का फ़लसफ़ा,
फिर तो नसीब क्या,लकीर क्या और तकदीर क्या.

हँसते हुए लोगों की संगत ईत्र की दुकान जैसे होती है,
कुछ ना खरीदो
फिर भी रूह महका देते है ...!!!

क्या लुटेगा जमाना खुशियो को हमारी....
हम तो खुद अपनी खुशिया दुसरो पर लुटाकर जीये है..

अब अपनी शख्सियत की भला मैं क्या मिसाल दूँ यारों,
ना जाने कितने लोग मशहूर हो गये, मुझे बदनाम करते

मुमकिन नहीं यहाँ हर नज़र में बेगुनाह रहना....
बस मैं कोशिश करता हूँ खुद की नज़रो में बेदाग रहूँ..

जब मैं चलूँ तो साया भी अपना न साथ दे
जब तुम चलो ज़मीन चले आसमाँ चले

अच्छा नाम छोड़ क्र जाएं:

हमेशा अच्छा नाम छोड़ कर जाएं, हो सकता है आप वापिस आएँ।

अगर आप लोगों के साथ अच्छा बर्ताव, करेंगे तो वे भी आप के साथ अच्छा बर्ताव करेंगे-----कम से कम 90%.

अगर सफलता का कोई राज़ है, तो वह दूसरों के दृष्टिकोण को समझने और चीजों को उसके दृष्टिकोण से अपने दृष्टिकोण जितने अच्छे से देख पाने की क्षमता में निहित है।

वाणी:

दुनिया की सबसे शक्तिशाली चीज इंसान के पास कुछ है तो वो है 'वाणी' .... एकमात्र वाणी ही है जो बिना शस्त्र के शान्ति बहाल कराती है और बिना बात के क्रांति लाती है .... काने आदमी की तारीफ़ में कहा जाये कि आप सभी को एक निगाह से देखते हैं, तो यह सत्यापन होगा या उस असहाय व्यक्ति के ऊपर कटूक्ति यह तो नहीं पता किन्तु इसमें शक नहीं कि यह सब लफ्जों की कारीगरी है .... वाणी शब्दों की फैक्टरी है और शब्द मन्त्रों समान ताकतवर हुआ करते हैं, हम उनका जिस प्रकार इस्तेमाल करते हैं, प्रतिक्रिया वैसी हो आती है .....

हज़ारों ऐब ढूँढ़ते है हम दूसरों में इस तरह,
अपने किरदारों में हम लोग,फरिश्तें हो जैसे...

वो मुझसे अक्सर नज़रें चुरा लेता है,
फ़राज़.....
मैंने काग़ज़ पर भी बनाकर देखी है आँखे उसकी

Almost everything can be purchased at reduced price
except ...
our satisfaction !!!

गिला भी तुझ से बहुत है मगर मोहब्बत भी
वो बात अपनी जगह है ये बात अपनी जगह

न शब ओ रोज़ ही बदले हैं न हाल अच्छा है
किस बरहमन ने कहा था कि ये साल अच्छा है

मैं तुम्हारी 'दुविधाओं' में हूँ
और..तुम मेरे 'यकीन' में हो

चल आ तेरे पैरो पर मरहम लगा दूं ऐ मुक़द्दर.
कुछ चोटे तुझे भी आई होगी,
मेरे सपनो को ठोकर मारकर।

अजीब सानेहा गुज़रा है इन घरों पे कोई,
कि चौंकता ही नहीं अब तो दस्तकों पे कोई

Saturday 16 April 2016

अंधश्रद्धा:

अन्धश्र्धा
**********
इजरायल में एक मशहूर यहूदी फकीर रहता था। वह बीमार हो गया। उसकी एक बंजारे नें खूब सेवा की। खुश होकर फकीर नें उसे एक गधा भेंट किया। गधा पाकर बंजारा बड़ा खुश हुआ। गधा स्वामी भक्त था। वह बंजारे की और बंजारा गधे की सेवा करता था। दोनों को एक दूसरे के प्रति बहुत लगाव हो गया। बंजारा यह मानता था की गधा फकीर की दी गयी भेंट है तो ज़रूर विलक्षण होगा।
एक दिन बंजारा गधे पर बैठ कर माल बेंचने दुसरे गाँव गया। दुर्भाग्य से गधा रास्ते में बीमार हो गया। पेट में दर्द उठा और गधा वहीँ तड़प कर मर गया। बंजारे को अत्यधिक शोक हुआ क्योंकि वह उसके लिए कमाऊ पूत था। उसनें गधे की कब्र बनाई और वहीं बैठकर दुःख के आंसू बहाने लगा। इतने में उधर से एक राहगीर गुजरा। उसनें यह दृश्य देखकर सोचा की अवश्य ही यहाँ किसी फकीर का निधन हुआ है। श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए उसने दो फूल तोड़े और कब्र पर चढ़ा दिए। दुसरे नें उसे फूल चढाते देखा तो पास आकर उसने जेब से दो रुपये निकाल कर कब्र पर चड़ा दिए। बंजारा यह सब चुपचाप देखता रहा और मन ही मन हंसा। दोनों राहगीर अगले गाँव गए और लोगों से कब्र का ज़िक्र किया। ग्रामीण लोग आए। उन्होंने भी फूल और पैसे चढ़ाए। अब बंजारे नें आगे जाने का फैसला छोड़ा और कब्र के पास बैठ गया। वह सोचने लगा की गधा जब जिन्दा था तब उतना कमाकर नहीं देता था जितना की मरने के बाद दे रहा है। खूब भीड़ लगती। जितने दर्शनार्थी आते कब्र का उतना ही ज्यादा प्रचार हो रहा था। गधे की कब्र किसी पहुंचे हुए फकीर की कब्र बन गयी।
एक दिन वह फकीर भी उसी रस्ते से गुजरा, जिसनें बंजारे को गधा दिया था। उसनें कब्र के बारे में चर्चा सुनी। वह भी कब्र पर झुका। जैसे ही उसने अपने पुराने भक्त बंजारे को बैठे देखा तो पूछा की यह कब्र किसकी है और तू यहाँ क्यों रो रहा है? बंजारे नें कहा की आपके सामने सच छुपाने की ताकत मुझमें नहीं है। उसने सारी आपबीती फकीर को सुना दी। फकीर को बड़ी हंसी आई। बंजारे नें पूछा की आपको हंसी क्यों आई? फकीर बोला --मैं जहाँ पर रहता हूँ वहां पर भी एक कब्र है जिसे लोग बड़ी श्रद्धा से पूजते हैं। आज में तुम्हें बताता हूँ की वह कब्र भी इस गधे की माँ की है। लोग नहीं जानते इसलिए किसी को भी पूजने लगते हैं। समझदार वही है जो अंधविश्वास में पड़े बिना सच्चाई को समझकर किसी बात को मानता है !

नेगेटिव में पॉजिटिव सोच:

निगेटिव में पॉजिटिव सोच

एक युवा महिला अपनी डाइनिंग टेबल पर बैठी थी और चिंतित थी, इस बात से परेशान थी कि, इनकमटैक्स देना पड़ता है। घर का ढेरों काम करना होता है और ऊपर से कल त्यौहार के दिन लंच पर बहुत से रिश्तेदार भी आने वाले हैं।
कुल मिलाकर वो बहुत परेशान थी।

करीब ही उसकी 10 साल की बिटिया अपनी स्कूल नोटबुक लिए बैठी थी।माँ के पूछने पर वो बोली---" टीचर ने होमवर्क दिया है (Negative Thanks giving) और कहा है कि, उन चीजों पर एक पैरेग्राफ लिखो जो प्रारम्भ में हमें अच्छी नहीं लगतीं, लेकिन बाद में वो अच्छी ही होती हैं। मैंने एक पैरेग्राफ लिख लिया है। "

उत्सुकतावश माँ ने बेटी से नोटबुक ली और पढ़ने लगी कि, उसकी बेटी ने क्या लिखा है।
बेटी ने लिखा था,

“ मैं अपनी फाइनल एग्जाम को धन्यवाद देती हूँ क्योंकि इसके बाद स्कूल बंद होकर छुट्टियाँ लग जाती हैं। "

" मैं उन कड़वी खराब स्वाद वाली दवाइयों को धन्यवाद देती हूँ जो मेरे स्वस्थ होने में सहायक होती हैं। "

" मैं सुबह सुबह जगाने वाली उस अलार्म क्लॉक को धन्यवाद देती हूँ जो सबसे पहले मुझे बताती है कि, मैं अभी जीवित हूँ। "

पढ़ते पढ़ते माँ ने महसूस किया कि, उसके खुद के पास भी तो बहुत कुछ ऐंसा है जिसके लिए वो भी धन्यवाद कह सकती है।

उसने फिर सोचा,

" उसे इनकमटैक्स देना होता है, इसका मतलब है कि वो सौभाग्यशाली है कि, उसके पास एक अच्छी सैलरी वाली बढ़िया नौकरी है। "

" उसे घर का बहुत काम करना पड़ता है, इसका मतलब है कि उसके पास एक घर है, एक आश्रय है। "

" उसे परिवार के बहुत से सदस्यों के लिए खाना बनाना होगा, इसका मतलब है कि उसके पास एक बड़ा परिवार है जिनके साथ वो त्योहारों पर सेलिब्रेट करती है। "

मॉरल :

हम निगेटिव बातों या चीजों को लेकर बहुत शिकायतें करते हैं लेकिन उनके पॉजिटिव पक्ष को समझने, देखने में असमर्थ रहते हैं।
आपके निगेटिव में क्या पॉजिटिव है, उसे समझिए और अपने हर दिन को एक बेहतरीन दिन बना लीजिए।

Friday 15 April 2016

Excellence you get more friends you'll lose:

प्रेम ही सब है:

एक औरत ने तीन संतों को अपने घर के सामने
देखा। वह उन्हें जानती नहीं थी।

औरत ने कहा –
“कृपया भीतर आइये और भोजन करिए।”

संत बोले – “क्या तुम्हारे पति घर पर हैं?”

औरत – “नहीं, वे अभी बाहर गए हैं।”

संत –“हम तभी भीतर आयेंगे जब वह घर पर
हों।”

शाम को उस औरत का पति घर आया और
औरत ने उसे यह सब बताया।

पति – “जाओ और उनसे कहो कि मैं घर
आ गया हूँ और उनको आदर सहित बुलाओ।”

औरत बाहर गई और उनको भीतर आने के
लिए कहा।

संत बोले – “हम सब किसी भी घर में एक साथ
नहीं जाते।”

“पर क्यों?” – औरत ने पूछा।

उनमें से एक संत ने कहा – “मेरा नाम धन है”

फ़िर दूसरे संतों की ओर इशारा कर के कहा –
“इन दोनों के नाम सफलता और प्रेम हैं।

हममें से कोई एक ही भीतर आ सकता है।

आप घर के अन्य सदस्यों से मिलकर तय कर
लें कि भीतर किसे निमंत्रित करना है।”

औरत ने भीतर जाकर अपने पति को यह सब
बताया।

उसका पति बहुत प्रसन्न हो गया और

बोला –“यदि ऐसा है तो हमें धन को आमंत्रित
करना चाहिए।
हमारा घर खुशियों से भर जाएगा।”

पत्नी – “मुझे लगता है कि हमें सफलता को
आमंत्रित करना चाहिए।”

उनकी बेटी दूसरे कमरे से यह सब सुन रही थी।
वह उनके पास आई और बोली –
“मुझे लगता है कि हमें प्रेम को आमंत्रित करना
चाहिए। प्रेम से बढ़कर कुछ भी नहीं हैं।”

“तुम ठीक कहती हो, हमें प्रेम
को ही बुलाना चाहिए” – उसके माता-पिता ने
कहा।

औरत घर के बाहर गई और उसने संतों से पूछा –
“आप में से जिनका नाम प्रेम है वे कृपया घर में
प्रवेश कर भोजन गृहण करें।”

प्रेम घर की ओर बढ़ चले।

बाकी के दो संत भी उनके
पीछे चलने लगे।

औरत ने आश्चर्य से उन दोनों से पूछा –
“मैंने
तो सिर्फ़ प्रेम को आमंत्रित किया था। आप लोग
भीतर क्यों जा रहे हैं?”

उनमें से एक ने कहा – “यदि आपने धन और
सफलता में से किसी एक को आमंत्रित किया होता
तो केवल वही भीतर जाता।

आपने प्रेम को आमंत्रित किया है।

प्रेम कभी अकेला नहीं जाता।
प्रेम जहाँ-जहाँ जाता है, धन और सफलता
उसके पीछे जाते हैं।

इस कहानी को एक बार, 2 बार, 3 बार
पढ़ें ........

अच्छा लगे तो प्रेम के साथ रहें,

प्रेम बाटें, प्रेम दें और प्रेम लें

क्यों कि प्रेम ही
सफल जीवन का राज है।

Tuesday 12 April 2016

एक कतरा:

एक क़तरा मलाल भी बोया नहीं गया
वो ख़ौफ था कि लोगों से रोया नहीं गया

ये सच है कि तेरी भी नीदें उजड़ गईं
तुझ से बिछड़ के हम से भी सोया नहीं गया

दामन है ख़ुश्क,आँख भी चुपचाप है बहुत
लड़ियों में आँसूओं को पिरोया नहीं गया

अलफ़ाज तलख़ बात का, अंदाज सर्द है
पिछला मलाल आज भी गोया नहीं गया

Happiness:

एक व्यक्ति के पास जो वह करता है उसके पीछे दो कारण होते हैं------एक अच्छा और एक सच्चा

“Happiness is like a butterfly. The more you chase it, the more it eludes you. But if you turn your attention to other things, It comes and sits softly on your shoulder.”

An Inspirational Story:

An Inspirational Story

Daddy, how much do you make an hour?
With a timid voice and idolizing eyes, the little boy greeted his Father as he returned from work, "Daddy, how much do you make an hour?" Greatly surprised, but giving his boy a glaring look, the Father said: "Look, son, not even your mother knows that. Don't bother me now, I’m tired." "But Daddy, just tell me please!? How much do you make an hour," the boy insisted.

The Father finally giving up replied: "Twenty dollars per hour." "Okay, Daddy? Could you loan me ten dollars?" the boy asked. Showing restlessness and positively disturbed, the Father yelled: "So that was the reason you asked how much I earn, right?? Go to sleep and don't bother me anymore!"

It was already dark and the Father was meditating on what he had said and was feeling guilty. Maybe he thought, his son wanted to buy something. Finally, trying to ease his mind, the Father went to his son’s room.

"Are you asleep son?" asked the Father. "No, Daddy. Why?" replied the boy partially asleep. "Here’s the money you asked for earlier," the Father said. "Thanks, Daddy!" rejoiced the son, while putting his hand under his pillow and removing some money. "Now I have enough! I have twenty dollars!" the boy said to his Father.

The Father sat there, gazing at his son, confused at what his son just said. "Now Daddy could you sell me one hour of your time?"

जुदा किसी का हबीब न हो:

जुदा किसी से किसी का ग़रज़ हबीब न हो
ये दाग़ वो है कि दुश्मन को भी नसीब न हो

मैंने ज़माने के एक बीते दोर को देखा है.....
दिल के सुकून को और गलियों के शोर को देखा है....
मैं जानता हूँ की लोग कैसे बदल जाते हैं…

ऐ दोस्त हम ने तर्क-ए-मोहब्बत के बावजूद
महसूस की है तेरी ज़रूरत कभी कभी

टूटता हुआ तारा सबकी दुआ पूरी करता है..
क्यों के उसे टूटने का दर्द मालूम होता है..

किसकी है ये तस्वीर जो बनती नहीं मुझसे,
मैं किसका तक़ाज़ा हूँ कि पूरा नहीं होता ..!

गुम हो चले हो तुम तो बहुत ख़ुद में ऐ 'मुनीर'
दुनिया को कुछ तो अपना पता देना चाहिए

हक़ीक़तों में ज़माना बहुत गुज़ार चुके
कोई कहानी सुनाओ बड़ा अँधेरा है

उस को रुख़्सत तो किया था मुझे मालूम न था
सारा घर ले गया घर छोड़ के जाने वाला

तुम आए हो तुम्हें भी आज़मा कर देख लेता हूँ
तुम्हारे साथ भी कुछ दूर जा कर देख लेता हूँ!

ज़िंदगी जब्र है और जब्र के आसार नहीं
हाए इस क़ैद को ज़ंजीर भी दरकार नहीं

उच्च उपलब्धिओं के लिए आवश्यक हैं उच्च लक्ष्य।

वो मायूसी के लम्हों में ज़रा भी हौसला देता !
तो हम कागज़ की कश्ती पर समुन्दर में उतर जाते !!

आप के पास जो आटा है रोटी उसी की बनेगी:

इक अजब चीज़ है शराफ़त भी
इस में शर भी है और आफ़त भी

साँसों का टूट जाना तो आम सी बात है 'फराज़',
जहां अपने जुदा हो जाए मौत उस को कहते है !

कड़ी से कड़ी जोङते जाओ तो जंजीर बन जाती है
मेहनत पे मेहनत करो तो तक़दीर बन जाती है

खुशियाँ उतनी ही अच्छी जितनी मुट्ठियों मे समा जाए छलकती
बिखरती खुशियो को अक्सर नजर लग जाया करती है

आपके पास जो आटा है आप उसी की रोटी बना सकते हैं।

चलो टुटते तारों को उठा लाएं:

हर इक ने देखा मुझे अपनी अपनी नज़रों से
कोई तो मेरी नज़र से भी देखता मुझ को

उस की हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकूँ
ढूँडने उस को चला हूँ जिसे पा भी न सकूँ

लोग कहते हैं किसी एक के चले जाने से जिन्दगी अधूरी नहीं होती
लेकिन लाखों के मिल जाने से उस एक की कमी पूरी नहीं होती है

चलो टूटे सितारों को जमीं से अब उठा लाएं
रखेंगे हम वहीं उनको जहां अरमान रक्खे हैं

तुम सादा-मिज़ाजी से मिटे फिरते हो जिस पर
वो शख़्स तो दुनिया में किसी का भी नहीं है

बड़ों की उपेक्षा नहीं करनी चाहिये:

महाभारत का युद्ध चल रहा था. एक दिन दुर्योधन के व्यंग्य से आहत होकर "भीष्म पितामह" घोषणा कर देते हैं कि - मैं कल पांडवों का बध कर दूँगा. उनकी घोषणा का पता चलते ही पांडवों के शिविर में बेचैनी बढ़ गई. भीष्म की क्षमताओं के बारे में सभी को पता था इसलिए सभी किसी अनिष्ट की आशका से परेशान हो गए.
तब श्री कृष्ण ने द्रौपदी से कहा अभी मेरे साथ चलो.

श्री कृष्ण द्रौपदी को लेकर सीधे भीष्म पितामह के शिविर में पहुँच गए. शिविर के बाहर खड़े होकर उन्होंने द्रोपदी से कहा कि - अन्दर जाकर पितामह को प्रणाम करो. द्रौपदी ने अन्दर जाकर पितामह भीष्म को प्रणाम किया तो उन्होंने "अखण्ड सौभाग्यवती भव" का आशीर्वाद दे दिया.
फिर उन्होंने द्रोपदी से पूछा कि - "बत्स तुम इतनी रात में अकेली यहाँ कैसे आई हो. क्या तुमको श्री कृष्ण यहाँ लेकर आये है" ? तब द्रोपदी ने कहा कि -"हां और वे कक्ष के बाहर खड़े हैं" तब भीष्म भी कक्ष के बाहर आ गए और दोनों ने एक दूसरे का अभिवादन किया.

भीष्म ने कहा "मेरे एक वचन को मेरे ही दूसरे वचन से काट देने का काम श्री कृष्ण ही कर सकते है"।

शिविर से वापस लौटते समय श्री कृष्ण ने द्रौपदी से कहा कि - "तुम्हारे एक बार जाकर पितामह को प्रणाम करने से तुम्हारे पतियों को जीवनदान मिल गया है अगर तुम प्रतिदिन भीष्म, धृतराष्ट्र, द्रोणाचार्य, आदि को प्रणाम करती होती और दुर्योधन- दुःशासन, आदि की पत्नियां भी पांडवों को प्रणाम करती होंती, तो संभवतः इस युद्ध की नौबत ही न आती" ।
...
मित्रो वर्तमान में हमारे घरों में जो इतनी समस्याए हैं उनका भी मूल कारण यही है कि "जाने अनजाने अक्सर घर के बड़ों की उपेक्षा हो जाती है" । यदि घर के बच्चे और बहुएँ प्रतिदिन घर के सभी बड़ों को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद लें तो, शायद किसी भी घर में कभी कोई क्लेश न हो. बड़ों के दिए आशीर्वाद कवच की तरह काम करते हैं उनको कोई "अस्त्र-शस्त्र" नहीं भेद सकता ।

Friday 8 April 2016

देखा मुझ को अपनी नज़रों से:

हर इक ने देखा मुझे अपनी अपनी नज़रों से
कोई तो मेरी नज़र से भी देखता मुझ को

उस की हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकूँ
ढूँडने उस को चला हूँ जिसे पा भी न सकूँ

लोग कहते हैं किसी एक के चले जाने से जिन्दगी अधूरी नहीं होती
लेकिन लाखों के मिल जाने से उस एक की कमी पूरी नहीं होती है

Thursday 7 April 2016

रास्ता रोके तो हिम्मत और बढ़ती है:

सफ़र में मुश्किलें आएँ तो ज़ुर्रत और बढ़ती है
कोई जब रास्ता रोके तो हिम्मत और बढ़ती है

मैं मरूँगा सुखी क्योंकि मैंने जीवन की धज्जियाँ उड़ाई हैं .......

ग़म की गर्मी से दिल पिघलते रहे तजुर्बे आँसुओं में ढलते रहे
ज़हर था ज़िंदगी के कूज़े में जानते थे मगर निगलते रहे

दर्द से 'आजिज़' न छुटकारा कभी पाऐंगें हम
साथ लाये हैं यह तोहफ़ा साथ ले जाएेंगें हम

दुख हुआ करता है कुछ
और बयाँ 
बात कुछ और हुआ करती है 

खुशियाँ पेश आई तक़ल्लुफ़ से मगर
ग़म  बड़े  हक़  से  मेरे  घर  में  रहा

डर हमको भी लगता है रस्ते के सन्नाटे से लेकिन एक सफ़र पर ऐ दिल अब जाना तो होगा

 [8:11 AM, 8/24/2023] Bansi Lal: डर हमको भी लगता है रस्ते के सन्नाटे से लेकिन एक सफ़र पर ऐ दिल अब जाना तो होगा [8:22 AM, 8/24/2023] Bansi La...