शिद्दत-ए-दर्द से शर्मिंदा नहीं मेरी वफ़ा,
रिश्ते गहरीं हैं तो ज़ख़्म भी गहरे होंगे
कितनी मासूम लग रही हो तुम
तुमको जालिम कहे वो झुठा हैं
बड़ी शिद्दत से राजी हुए हैं वो साथ चलने को....
खुदा करे के मुझे सारी ज़िन्दगी मंज़िल न मिल
मैं अक्सर हार जाता हूँ,
अपनों की जीत की खातिर...
मेरा अपना तरीक़ा है
किसी से जीत जाने का.....
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