Friday 14 February 2020

वो बेहिसी थी लम्हा ए रुख़सत न पूछिये

वो बेहिसी थी लम्हा ए रुख़सत न पूछिये
उसको गले  लगाये बिना  लौट आये हम

ढूँढ सको तो मेरी खामोशी में भी वो लफ्ज़ है
"जिसे अक्सर तुम सुनने की जिद्द करते थें "

बेहिसी - insensitivity


अकड़
शब्द में कोई मात्रा नहीं है,
पर ये अलग अलग मात्रा में हर एक इन्सान में मौजूद है..


“एकांत की अपनी ज़िदें होती हैं।”


बातें बड़ी नही होती
आप
सोच कर उन्हें बड़ा बना देते हो..


तुम्हारे शहर के सारे दिए तो सो गए कब के,
हवा से पूछना दहलीज़ पे ये कौन जलता है


परिवार और समाज
दोनों ही बर्बाद होने लगते हैं

जब समझदार मौन
और
नासमझ बोलने लगते हैं.....!


"लहज़ा" शिकायत का था...
               मगर,

सारी "महफिल" समझ गई..
मामला "मोहब्बत" का हैं...


तुम्हारा मिलना महज़ कोई इत्तिफ़ाक़ नहीं,
उम्र भर की इबादतों का मुआवज़ा हो तुम


लहरें देखती रहती हैं
दरिया देखने वालों को

यूँ ही सस्ते में नहीं बिक गये तुम,

यूँ ही सस्ते में नहीं बिक गये तुम,
तुम्हारी औकात का पता
था खरीददारों को..


“स्मृति भी आँख बन जाती है
जब अँधेरा हो घना
और जाना हो आगे...”

कभी बे सबब भी बात कर....
हर बार कोई वजह हो जरूरी नहीं ?

हमारी राह से पत्थर उठा कर फेंक मत देना,
लगी हैं ठोकरें तब जा के चलना सीख पाए हैं

“एक समाज को
अगर मारना हो
तो सबसे पहले उसके युवाओं को
सभ्य भाषा व सहनशील संस्कृति से दूर करो
और ध्यान रहे
यथासंभव इतिहास उसे बताया ही न जाये।”

बदलें हैं मिज़ाज, कुछ दिनों से उनके ..

बदलें हैं मिज़ाज, कुछ दिनों से उनके ..
‘बात’ तो करते हैं वो, मगर बातें नहीं करते


फूलों का बिखरना तो, मुक़द्दर ही था लेकिन,
कुछ इस में हवाओं की, सियासत भी बहुत थी


कलम लिख नहीं पाती हर उदास लम्हें को
कुछ जज़्बात दिल की गहराइयों में डूब जाते हैं!!


ज़िन्दगी की किताब के हर पन्ने को कुछ इस तरह लिखना
अगर कभी महफ़िल में पढ़ी जाये तो शोर गज़ब का हो


मूँह में जुबान सब रखते हैं मगर कमाल वो करते हैं
जो सम्भाल के रखते हैं..


तेज़ हवा से टकराने में एक हुनर था कश्ती का
लोग तमाशा देख रहे थे बैठे दूर किनारों से


संघर्ष प्रकृति का आमन्त्रण है..
जो स्वीकार करता है, वही आगे बढ़ता है...


“सुख सहना सब को नहीं आता
फूल जानते हैं
कैसे ख़ामोशी, आनंद से खिलना है

नदी समझती है
कैसे भरी बरसात को सहेजना है!

Thursday 13 February 2020

हम आज भी अपने हुनर में दम रखते हैं,

छा जाते हैं रंग जब हम महफ़िल में कदम रखते हैं...!!

वो बेहिसी थी लम्हा ए रुख़सत न पूछिये

वो बेहिसी थी लम्हा ए रुख़सत न पूछिये
उसको गले  लगाये बिना  लौट आये हम

-हरमन दिनेश

Monday 10 February 2020

परछाईयां हैं जाते-जाते जायेंगी ....

 परछाईयां हैं जाते-जाते जायेंगी ....


वो आराम से हैं जो, पत्थर के हैं..!
 मुसीबत तो, एहसास वालों की हैं..!!


अजीब शख़्स है नाराज़ हो के हंसता है
मैं चाहता हूं ख़फ़ा हो तो वो ख़फ़ा ही लगे
- बशीर बद्र


पत्थर सा बदनाम हूँ साहब अपने शहर में
आईना कहीं भी टूटे नाम मेरा ही आता है।


आँसू जानते हैं कौन अपना है तभी अपनो के आगे निकलते हैं
मुस्कुराहट का क्या है ??? ग़ैरों से भी वफ़ा कर लेती है…!!


ख्वाहिश भले ही छोटी हो, मगर..
उसे पूरा करने की जिद बड़ी होनी चाहिए..


If nothing wrong is happening in your life, then you don’t have much going on in your life.

तुम तो यूँ हीं आसूँओं से परेशान हो
यक़ीन मानो,  मुस्कुराना और भी मुश्किल है...!!

जंग में अक़्ल से अधिक ग़ुस्सा


जंग में अक़्ल से अधिक ग़ुस्सा
सिर्फ़ दुश्मन के काम आता है


शब-ए-इंतिज़ार की कश्मकश में न पूछ कैसे सहर हुई
कभी इक चराग़ जला दिया कभी इक चराग़ बुझा दिया

जब हम अकेले हों
तब अपने विचारों को संभालें

और जब हम सबके बीच हों
तब अपने शब्दों को संभालें..

रिश्ते जब मजबूत होते हैं
बिन कहे महसूस होते हैं


"बातों में दिखता है तजुर्बा,
चोट तुम्हारी भी गहरी थी।।"


कमाल उसने किया और मैंने हद कर दी !
के खुद बदल गया उसकी नज़र बदलने तक !!

बदल जाते है वो लोग अक्सर वक़्त की तरह ,
जिनको हद्द से ज़्यादा वक़्त दिया जाता है...!!

वफ़ा का सबूत और क्या दूं तुझे ....
तेरी कश्ती में छेद था
फिर भी हमने सफ़र से इंकार नहीं किया

बुराई की विशेषता यह है कि यह कभी हार नहीं मानती परन्तु अच्छाई की विशेषता यह है कि यह कभी हारती नहीं !!!

कुछ लोग तो आपसे सिर्फ इसलिए नफ़रत करते हैं.....
क्योंकि, बहुत सारे लोग आपकी इज्जत करते हैं...

शिद्दते दर्द से शर्मिंदा नहीं मेरी वफ़ा.......
दोस्त गहरे हैं.... तो फिर ज़ख्म भी गहरे होंगे...!

जब मैं डूबा तो समन्दर को भी हैरत हुई कि
अजीब शख़्स है किसीको पुकारता ही नहीं।

“आकाश का कोई रंग नहीं होता,

“आकाश का कोई रंग नहीं होता,
नीलापन उसका फरेब है!”


अगर बिकने पर आ जाओ तो घट  जातें हैं दाम अक्सर ...
ना बिकने का ईरादा हो तो किमत बढ जाती है अक्सर

जो आला-ज़र्फ़ होते हैं हमेशा झुक के मिलते हैं

जो आला-ज़र्फ़ होते हैं हमेशा झुक के मिलते हैं
सुराही सर-निगूँ हो कर भरा करती है पैमाना

सर-निगूँ  vanquished
defeated, overthrown, vanquished

आला-ज़र्फ़
high capacity, elegance (of manners)
अति शिष्ट ,

 जिसके आते ही बेसाख्ता मुस्कुराऊं..
वो ख्याल हो तुम..!!

एक के पास नमक है..
और..दूसरे के पास मरहम है..

तलाश
दोनों को जख्म की है...

न पाक होगा कभी हुस्न ओ इश्क़ का झगड़ा
वो क़िस्सा है ये कि जिस का कोई गवाह नहीं

फिर उसने उंगली मेरे होठों पर रख दी,
मैंने इतना ही कहा था कहीं हम बिछड गए तो।

जिसकी रूह में बस गया हो कोई
 उससे नजदीकियों के मायने न पूछिए....!

किसी को कैसे बताएँ ज़रूरतें अपनी


किसी को कैसे बताएँ ज़रूरतें अपनी

मदद मिले न मिले आबरू तो जाती है


उस कोरे कागज में इतने जज्बात थे

के हम कुछ लिखने से पहले ही रो पड़े


पत्थर सदैव हथौड़े की अंतिम चोट से टूटता है,

लेकिन इसका यह मतलब नहीं की पहले की सभी चोटें बेकार गईं....


"सफलता निरंतर प्रयासों का ही परिणाम है”

हाथ ठंड में और बुद्धि घमंड में

काम नहीं करते..


उम्मीद एक ऐसी "ऊर्जा" है
जिससे "जिंदगी" का कोई भी "अँधेरा" हिस्सा "रोशन" किया जा सकता है...


"हर थका चेहरा तुम ग़ौर से देखना

उसमें  गया कल और आनेवाला कल भी वहीं कहीं होगा..."
यूँ तो बड़े व्यस्त हो तुम ,

फिर मुझे भूलने की फुर्सत कैसे मिली...!!



मय में कोई ख़ामी है न साग़र में कोई खोट
पीना नहीं आए है तो    छलकाए चलो हो


क़ामयाब होने के लिए अपने मेहनत पर यक़ीन करना होगा,

क्योंकि किस्मत तो  जुएँ में आजमाई जाती है..


झूठ इसलिए बिक जाता है,
क्योंकि सच को ख़रीदने की,
सबकी औकात नहीं होती !!


“मैं ऊँचा होता चलता हूँ
उनके ओछेपन से गिर-गिर,
उनके छिछलेपन से ख़ुद-ख़ुद,
मैं गहरा होता चलता हूँ।”


बात ईतनी  मधुर रखें कि

वापस लेनी भी  पड़े तो , खुद को  कभी कड़वी  ना लगें ...


तेरे साथ जिंदगी
तेरे बाद का
न सोचा है न सोचना है....

एक समंदर है जो काबु करना है,

 एक समंदर है जो काबु करना है,
और एक कतरा है जो मुझसे सम्भाला नहीं जाता.....
एक उम्र है जो बितानी है तेरे बग़ैर
औऱ एक लम्हा है जो मुझसे गुजारा नहीं जाता.....


+लोग शोर से जाग जाते है साहब मुझे..

एक इंसान की खामोशी सोने नहीं देती..


ख़ुद को यूँ बाँध कर बैठा हूँ अपने अस्तित्व में
मंज़िलें चारों तरफ़ है रास्ता कोई नहीं


मुमकिन नहीं हर वक्त
मेहरबान रहे जिंदगी,

कुछ लम्हे हमें जीने का
तजुर्बा भी सिखाते है.


यक़ीन हो तो कोई रास्ता निकलता है
हवा की ओट भी ले कर चराग़ जलता है


दौलत सिर्फ
रहन सहन का
स्तर बदल सकती है,
बुद्धि नियत और
तक़दीर" नही..


जहाँ हम नहीं होते है..

वहाँ हमारे गुण व अवगुण हमारा प्रतिनिधित्व करते है......


खत क्या लिखा इंसानियत के नाम पे,

डाकिया ही गुजर गया पता ढूंढते ढूंढते..


आवाज़ों की भीड़ में इतने शोर-शराबे में
अपनी भी इक राय रखना कितना मुश्किल है


“दुख उन्हें घेरता है जो सुख को सलीक़े से नहीं सहते।”


अपने हर लफ्ज़ में कहर रखते हैं हम,

रहें खामोश फिर भी असर रखते हैं हम....!!!!

डर हमको भी लगता है रस्ते के सन्नाटे से लेकिन एक सफ़र पर ऐ दिल अब जाना तो होगा

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