Friday 23 September 2016

रोटी और कुबड़ा:

*बहुत सुंदर कथा ..*

*एक औरत अपने परिवार के सदस्यों के लिए रोज़ाना भोजन पकाती थी और एक रोटी वह वहाँ से गुजरने वाले किसी भी भूखे के लिए पकाती थी..।*

*वह उस रोटी को खिड़की के सहारे रख दिया करती थी, जिसे कोई भी ले सकता था..।*

*एक कुबड़ा व्यक्ति रोज़ उस रोटी को ले जाता और बजाय धन्यवाद देने के अपने रस्ते पर चलता हुआ वह कुछ इस तरह बड़बड़ाता- "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा..।"*

*दिन गुजरते गए और ये सिलसिला चलता रहा..*

*वो कुबड़ा रोज रोटी लेके जाता रहा और इन्ही शब्दों को बड़बड़ाता - "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा.।"*

*वह औरत उसकी इस हरकत से तंग आ गयी और मन ही मन खुद से कहने लगी की-"कितना अजीब व्यक्ति है,एक शब्द धन्यवाद का तो देता नहीं है, और न जाने क्या-क्या बड़बड़ाता रहता है, मतलब क्या है इसका.।"*

*एक दिन क्रोधित होकर उसने एक निर्णय लिया और बोली-"मैं इस कुबड़े से निजात पाकर रहूंगी।"*

*और उसने क्या किया कि उसने उस रोटी में ज़हर मिला दिया जो वो रोज़ उसके लिए बनाती थी, और जैसे ही उसने रोटी को को खिड़की पर रखने कि कोशिश की, कि अचानक उसके हाथ कांपने लगे और रुक गये और वह बोली- "हे भगवन, मैं ये क्या करने जा रही थी.?" और उसने तुरंत उस रोटी को चूल्हे कि आँच में जला दिया..। एक ताज़ा रोटी बनायीं और खिड़की के सहारे रख दी..।*

*हर रोज़ कि तरह वह कुबड़ा आया और रोटी ले के: "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा, और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा" बड़बड़ाता हुआ चला गया..।*

*इस बात से बिलकुल बेख़बर कि उस महिला के दिमाग में क्या चल रहा है..।*

*हर रोज़ जब वह महिला खिड़की पर रोटी रखती थी तो वह भगवान से अपने पुत्र कि सलामती और अच्छी सेहत और घर वापसी के लिए प्रार्थना करती थी, जो कि अपने सुन्दर भविष्य के निर्माण के लिए कहीं बाहर गया हुआ था..। महीनों से उसकी कोई ख़बर नहीं थी..।*

*ठीक उसी शाम को उसके दरवाज़े पर एक दस्तक होती है.. वह दरवाजा खोलती है और भोंचक्की रह जाती है.. अपने बेटे को अपने सामने खड़ा देखती है..।*

*वह पतला और दुबला हो गया था.. उसके कपडे फटे हुए थे और वह भूखा भी था, भूख से वह कमज़ोर हो गया था..।*

*जैसे ही उसने अपनी माँ को देखा, उसने कहा- "माँ, यह एक चमत्कार है कि मैं यहाँ हूँ.. आज जब मैं घर से एक मील दूर था, मैं इतना भूखा था कि मैं गिर गया.. मैं मर गया होता..।*

*लेकिन तभी एक कुबड़ा वहां से गुज़र रहा था.. उसकी नज़र मुझ पर पड़ी और उसने मुझे अपनी गोद में उठा लिया.. भूख के मरे मेरे प्राण निकल रहे थे.. मैंने उससे खाने को कुछ माँगा.. उसने नि:संकोच अपनी रोटी मुझे यह कह कर दे दी कि- "मैं हर रोज़ यही खाता हूँ, लेकिन आज मुझसे ज़्यादा जरुरत इसकी तुम्हें है.. सो ये लो और अपनी भूख को तृप्त करो.।"*

*जैसे ही माँ ने उसकी बात सुनी, माँ का चेहरा पीला पड़ गया और अपने आप को सँभालने के लिए उसने दरवाज़े का सहारा लीया..।*

*उसके मस्तिष्क में वह बात घुमने लगी कि कैसे उसने सुबह रोटी में जहर मिलाया था, अगर उसने वह रोटी आग में जला के नष्ट नहीं की होती तो उसका बेटा उस रोटी को खा लेता और अंजाम होता उसकी मौत..?*

*और इसके बाद उसे उन शब्दों का मतलब बिलकुल स्पष्ट हो चूका था-*
*जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा,और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा।।*

              *" निष्कर्ष "*
           ==========
*हमेशा अच्छा करो और अच्छा करने से अपने आप को कभी मत रोको, फिर चाहे उसके लिए उस समय आपकी सराहना या प्रशंसा हो या ना हो..।*
            ==========

Wednesday 21 September 2016

पिकासो:

मंजिल उन्हीं को मिलती है जिनके सपनों में जान होती है-------------------
पिकासो(Picasso) स्पेन में जन्में एक
बहुत मशहूर चित्रकार थे। उनकी पेंटिंग दुनिया भर में करोड़ों और अरबों रुपयों में बिका करती थीं।
एक दिन रास्ते से गुजरते समय एक महिला की नजर पिकासो पर पड़ी और संयोग से उस महिला ने उन्हें पहचान लिया। वो दौड़ी हुई उनके पास आयी और बोली – सर मैं आपकी बहुत बड़ी फैन हूँ। आपकी पेंटिंग्स मुझे बहुत ज्यादा पसंद हैं। क्या आप मेरे लिए भी एक पेंटिंग बनायेंगे ?
पिकासो हँसते हुए बोले – मैं यहाँ खाली
हाथ हूँ मेरे पास कुछ नहीं है मैं फिर कभी आपके लिए पेंटिंग बना दूंगा। लेकिन उस महिला ने भी जिद पकड़ दी कि मुझे अभी एक पेंटिंग बना के दो, बाद में पता नहीं आपसे मिल पाऊँगी या नहीं।
पिकासो ने जेब से एक छोटा सा कागज निकाला और अपने पेन से उसपे कुछ बनाने लगे। करीब 10 सेकेण्ड के अंदर पिकासो ने पेंटिंग बनायीं और कहा ये लो ये मिलियन डॉलर की पेंटिंग है।
उस लड़की को बड़ा अजीब लगा कि पिकासो ने बस 10 सेकेण्ड में जल्दी से एक काम चलाऊ पेंटिंग बना दी और बोल रहे हैं कि मिलियन डॉलर की पेंटिग है। उस औरत ने वो पेंटिंग ली और बिना कुछ बोले अपने घर आ गयी।
उसको लगा पिकासो उसका पागल बना रहा है, इसलिए वो मार्किट गयी और उस पेंटिंग की कीमत पता की। और उसे बड़ा आश्चर्य हुआ कि वो पेंटिंग वास्तव में मिलियन डॉलर की थी।
वो भागी भागी एक बार फिर पिकासो के पास आयी और बोली – सर आपने बिलकुल सही कहा था ये तो मिलियन डॉलर की ही पेंटिंग है। पिकासो ने हँसते हुए कहा कि मैंने तो आपसे पहले ही कहा था।
वो महिला बोली – सर आप मुझे अपनी स्टूडेंट बना लीजिये और मुझे भी पेंटिंग बनानी सीखा दीजिये। जैसे आपने 10 सेकेण्ड में मिलियन डॉलर की पेंटिंग बना दी, वैसे मैं भी 10 सेकेण्ड में ना सही 10 मिनट में ही अच्छी पेंटिंग बना सकूँ। मुझे ऐसा बना दीजिये।
पिकासो ने हँसते हुए कहा – ये जो मैंने 10 सेकेण्ड में पेंटिंग बनायीं है इसे सीखने में मुझे 30 साल का समय लगा। मैंने अपने जीवन के 30 साल सीखने में दिए तुम भी दो, सीख जाओगी।
वो महिला अवाक् निःशब्द होकर पिकासो को देखती रह गयी।
दोस्तों जब हम दूसरों को सफल होता देखते हैं तो हमें ये सब बड़ा आसान लगता है। हमको लगता है कि यार ये इंसान को बड़ी जल्दी और बड़ी आसानी से सफल हो गया। लेकिन मेरे दोस्त उस एक सफलता के पीछे ना जाने कितने सालों की मेहनत छिपी है ये कोई नहीं देख पाता।
सफलता तो बड़ी आसानी से मिल जाती है लेकिन सफलता की तैयारी में अपना जीवन कुर्बान करना होता है। जो लोग खुद को तपाकर, संघर्ष करके अनुभव हासिल करते हैं वो कामयाब हो जाते हैं और दूसरों को लगता है कि ये कितनी आसानी से सफल हो गया।
मेरे दोस्त एग्जाम तो केवल 3 घंटे का होता है लेकिन उस 3 घण्टे के लिए पूरी साल तैयारी करनी पड़ती है। तो फिर आप रातों रात सफल होने का सपना कैसे देख सकते हो। सफलता अनुभव और संघर्ष मांगती है और अगर आप देने को तैयार हैं तो आपको आगे जाने से कोई नहीं रोक सकता।

Monday 19 September 2016

"शर्मा जी" वृद्धाश्रम से अपने वृद्ध पिता को साथ लेकर.................

एक बार मेरे शहर में एक प्रसिद्ध बनारसी विद्वान् "ज्योतिषी" का आगमन हुआ..!! माना जाता है कि उनकी वाणी में सरस्वती विराजमान है। वे जो भी बताते है वह 100% सच होता है।
501/- रुपये देते हुए "शर्मा जी" ने अपना दाहिना हाथ आगे बढ़ाते हुए ज्योतिषी को कहा.., "महाराज, मेरी मृत्यु कब, कहॉ और किन परिस्थितियों में होगी?"
ज्योतिषी ने शर्मा जी की हस्त रेखाऐं देखीं, चेहरे और माथे को अपलक निहारते रहे।
स्लेट पर कुछ अंक लिख कर जोड़ते–घटाते रहे।
बहुत देर बाद वे गंभीर स्वर में बोले.., "शर्मा जी, आपकी भाग्य रेखाएँ कहती है कि जितनी आयु आपके पिता को प्राप्त होगी उतनी ही आयु आप भी पाएँगे।
जिन परिस्थितियों में और जहाँ आपके पिता की मृत्यु होगी, उसी स्थान पर ओर उसी तरह, आपकी भी मृत्यु होगी।"
यह सुन कर "शर्मा जी" भयभीत हो उठे और चल पडे .......
एक घण्टे बाद ....
"शर्मा जी" वृद्धाश्रम से अपने वृद्ध पिता को साथ लेकर घर लौट रहे थे..!!

अज्ञानं ज्ञान की आखरी पराकाष्टा है:

सुकरात ने कहा कि जब मैं युवा था,
तो मैं सोचता था मैं बहुत कुछ जानता हूं;
फिर जब मैं बूढ़ा हुआ, प्रौढ़ हुआ तो मैंने जाना
कि मैं बहुत कम जानता हूं, बहुत कुछ कहां!
इतना जानने को पड़ा है!

मेरे हाथ में क्या है—कुछ भी नहीं,
कुछ कंकड़—पत्थर बीन लिए हैं!
और इतना विराट अपरिचित है अभी!
जरा सी रोशनी है

मेरे हाथ में—चार कदम
उसकी ज्योति पड़ती है—
और सब तरफ
गहन अंधकार है! नहीं,
मैं कुछ ज्यादा नहीं जानता;
थोड़ा जानता हूं।

और सुकरात
ने कहा कि जब
मैं बिलकुल मरने
के करीब आ गया,
तब मुझे पता
चला कि वह भी मेरा
वहम था कि
मैं थोड़ा जानता हूं।
मैं कुछ भी नहीं जानता हूं।
मैं अज्ञानी हूं।

जिस दिन
सुकरात ने यह कहा,
मैं अज्ञानी हूं,

उसी दिन
डेल्फी के मंदिर
के देवता ने घोषणा
की कि सुकरात
इस देश का
सबसे बड़ा ज्ञानी है।
जो लोग डेल्फी का
मंदिर देखने गए थे,
उन्होंने भागे आकर
सुकरात को खबर
दी कि डेल्फी के
देवता ने घोषणा की है
कि

सुकरात इस समय पृथ्वी का
सबसे बड़ा ज्ञानी है।
आप क्या कहते हैं?

सुकरात ने कहा:
जरा देर हो गई।

जब मैं जवान था तब कहा
होता तो मैं बहुत खुश होता।
जब मैं बूढ़ा होने
के करीब हो रहा था,
तब भी कहा होता,
तो भी कुछ प्रसन्नता होती।

मगर अब देर हो गई,
क्योंकि अब तो मैं जान चुका
कि मैं कुछ भी नहीं जानता हूं।

जो यात्री डेल्फी
के मंदिर से आए थे,
वे तो बड़ी बेचैनी में
पड़े कि अब क्या करें।
डेल्फी का देवता कहता है

कि सुकरात
सबसे बड़ा ज्ञानी है
और सुकरात खुद कहता है कि
मैं सबसे बड़ा अज्ञानी हूं;
मुझसे बड़ा अज्ञानी नहीं।
अब हम करें क्या?
अब हम मानें किसकी?
अगर डेल्फी के देवता की
मानें कि सबसे बड़ा ज्ञानी है
तो फिर इस ज्ञानी की
भी माननी चाहिए,
सबसे बड़ा ज्ञानी है।

तब तो बड़ी मुश्किल हो जाती है।
कि अगर इस सबसे बड़े ज्ञानी
की मानें तो देवता गलत हो जाता है।

वे वापस गए। उन्होंने डेल्फी के देवता
को निवेदन किया कि आप कहते हैं
सबसे बड़ा ज्ञानी है सुकरात और हमने
सुकरात से पूछा सुकरात उलटी बात कहता है।
अब हम किसकी मानें? सुकरात कहता है:
मुझसे बड़ा अज्ञानी नहीं।

डेल्फी के देवता ने कहा:
इसलिए तो हमने घोषणा की है
कि वह सबसे बड़ा ज्ञानी है।

ज्ञान की चरम स्थिति है:
ज्ञान से मुक्ति।
ज्ञान की आखिरी पराकाष्ठा है:
ज्ञान के बोझ को विदा कर देना।
फिर निर्मल हो गए।
फिर स्वच्छ हुए।
फिर विमल हुए।
फिर कोरे हुए।

           ओशो पद घुंघरू बाँध—(प्रवचन—छठवां)

Sunday 18 September 2016

Wah its from Japan:

जापान में हमेशा से ही मछलियाँ खाने का
एक ज़रुरी हिस्सा रही हैं । और ये जितनी
ताज़ी होतीं हैँ लोग उसे उतना ही पसंद करते
हैं । लेकिन जापान के तटों के आस-पास
इतनी मछलियाँ नहीं होतीं की उनसे लोगोँ
की डिमांड पूरी की जा सके । नतीजतन
मछुआरों को दूर समुंद्र में जाकर मछलियाँ
पकड़नी पड़ती हैं।जब इस तरह से मछलियाँ
पकड़ने की शुरुआत हुई तो मछुआरों के
सामने एक गंभीर समस्या सामने आई ।
वे जितनी दूर मछली पक़डने जाते उन्हें
लौटने मे उतना ही अधिक समय लगता
और मछलियाँ बाजार तक पहुँचते-पहुँचते
बासी हो जातीँ , ओर फिर कोई उन्हें खरीदना
नहीं चाहता ।इस समस्या से निपटने के लिए
मछुआरों ने अपनी बोट्स पर फ्रीज़र लगवा
लिये । वे मछलियाँ पकड़ते और उन्हें फ्रीजर
में डाल देते ।
इस तरह से वे और भी देर तक मछलियाँ
पकड़ सकते थे और उसे बाजार तक पहुंचा
सकते थे । पर इसमें भी एक समस्या आ
गयी । जापानी फ्रोजेन फ़िश ओर फ्रेश
फिश में आसनी से अंतर कर लेते और
फ्रोजेन मछलियों को खरीदने से कतराते ,
उन्हें तो किसी भी कीमत पर ताज़ी मछलियाँ
ही चाहिए होतीं ।एक बार फिर मछुआरों ने
इस समस्या से निपटने की सोची और
इस बार एक शानदार तरीका निकाला ,
.उन्होंने अपनी बड़ी – बड़ी जहाजों पर
फ़िश टैंक्स बनवा लिए ओर अब वे
मछलियाँ पकड़ते और उन्हें पानी से
भरे टैंकों मे डाल देते ।
टैंक में डालने के बाद कुछ देर तो
मछलियाँ इधर उधर भागती पर जगह
कम होने के कारण वे जल्द ही एक
जगह स्थिर हो जातीं ,और जब ये मछलियाँ
बाजार पहुँचती तो भले वे ही सांस ले रही
होतीं लकिन उनमेँ वो बात नहीं होती जो
आज़ाद घूम रही ताज़ी मछलियों मे होती ,
ओर जापानी चखकर इन मछलियों में भी
अंतर कर लेते ।
तो इतना कुछ करने के बाद भी समस्या
जस की तस बनी हुई थी।अब मछुवारे
क्या करते ? वे कौन सा उपाय लगाते कि
ताज़ी मछलियाँ लोगोँ तक पहुँच पाती ?नहीं,
उन्होंने कुछ नया नहीं किया , वें अभी भी
मछलियाँ टैंक्स में ही रखते , पर इस बार
वो हर एक टैंक मे एक छोटी सी शार्क
मछली भी ङाल देते।
शार्क कुछ मछलियों को जरूर खा जाती
पर ज्यादातर मछलियाँ बिलकुल ताज़ी
पहुंचती।ऐसा क्यों होता ? क्योंकि शार्क
बाकी मछलियों की लिए एक चैलेंज की
तरह थी। उसकी मौज़ूदगी बाक़ी मछलियों
को हमेशा चौकन्ना रखती ओर अपनी
जान बचाने के लिए वे हमेशा अलर्ट रहती।
इसीलिए कई दिनों तक टैंक में रह्ने के
बावज़ूद उनमे स्फूर्ति ओर ताजापन बना रहता।
आज बहुत से लोगों
की ज़िन्दगी टैंक मे पड़ी उन मछलियों
की तरह हो गयी है जिन्हे जगाने की लिए
कोई shark मौज़ूद नहीं है। और अगर
unfortunately आपके साथ भी ऐसा ही है
तो आपको भी आपने life में नये challenges
accept करने होंगे।
आप जिस रूटीन के आदि हों चुकें हैँ
ऊससे कुछ अलग़ करना होगा, आपको
अपना दायरा बढ़ाना होगा और एक
बार फिर ज़िन्दगी में रोमांच और नयापन
लाना होगा।
नहीं तो , बासी मछलियों की तरह आपका
भी मोल कम हों जायेगा और लोग आपसे
मिलने-जुलने की बजाय बचते नजर आएंगे।
और दूसरी तरफ अगर आपकी लाइफ
में चैलेंजेज हैँ , बाधाएं हैँ तो उन्हें कोसते
मत रहिये , कहीं ना कहीं ये आपको fresh
and lively बनाये रखती हैँ , इन्हेँ
accept करिये, इन्हे overcome करिये
और अपना तेज बनाये रखिये।

Saturday 17 September 2016

तीन रत्न:

पृथ्वी पर तीन रत्न हैं - जल, अन्न और सुभाषित ।
लेकिन मूर्ख लोग पत्थर के टुकडों को ही रत्न कहते रहते हैं ।

इधर फ़लक को है ज़िद बिजलियाँ गिराने की
उधर हमें भी है धुन आशियाँ बनाने की

अजि यही तो दस्तूर है इस बेदर्द ज़माने का
हज़ार ग़म देकर ख़ुश रहने की फ़रमाइश करता है

ख़ामोशी तो छुपाती है ऐब और हुनर भी
सख्सियत का अन्दाजा तो गुफ्तगू से होता है।

मैं लौट आया था जिस दीवार पे दस्तक दे कर,
सुना है अब वहां दरवाज़ा निकल आया है...

शाखों से टूट जायें वह पत्ते नहीं हैं हम |
आंधी से कोई कह दे औकात में रहे ||

"वो मुझे छोड़ के इक शाम गए थे 'नासिर'
ज़िंदगी अपनी उसी शाम से आगे न बढ़ी!"

निगाहों से भी चोट:

When the only tool you have is a hammer; you tend to see every problem as a nail.

निगाहों से भी चोट लगती है यारो,
जब कोई देख के भी अनदेखा कर दे...

आँधियों ने लाख बढ़ाया हौसला धूल का..!
दो बूँद बारिश ने औकात बता दी...!!
Delays are not denials...... keep going..
keep vision clear.. Perseverance does wonders !!!

"It takes less time to do a thing right than it does to explain why you did it wrong."

“Always Try To Prove That;You Are Right But..
Never Attempt To Prove That;Others Are Wrong”….!!

Sometimes Life becomes so Selfish... that it wants everything ...but... while trying for Everything it misses Something that is WORTH EVERYTHING !!!

दर्द-ए-दिल की उन्हें ख़बर क्या हो
जानता कौन है पराई चोट

तबीबों का एहसान क्यूँ-कर न मानूँ
मुझे मार डाला दवा करते करते

अपने जैसी कोई तस्वीर बनानी थी मुझे
मेरे अंदर से सभी रंग तुम्हारे निकले

मेरा तरीका ज़रा मुख़्तलिफ़ है सूरज से,
मैं जिधर को डूबा था फिर वहीं से निकलूंगा

कठोर किन्तु सत्य:

🏼 कठोर किंतु सत्य 🏼
1- माचिस किसी दूसरी चीज
को जलाने से पहले खुद
को जलाती हैं..!
गुस्सा भी एक माचिस की तरह है..!
यह दुसरो को बरबाद करने से पहले
खुद को बरबाद करता है...
2- आज का कठोर व कङवा सत्य !!
चार रिश्तेदार एक दिशा में
तब ही चलते हैं ,
जब पांचवा कंधे पर हो...
3- कीचड़ में पैर फंस जाये तो नल के पास जाना चाहिए
मगर,
नल को देखकर कीचड़ में नही जाना चाहिए,
इसी प्रकार...
जिन्दगी में बुरा समय आ जाये
तो...
पैसों का उपयोग करना चाहिए
मगर...
पैसों को देखकर बुरे रास्ते पर नही जाना चाहिए...
4- रिश्तों की बगिया में एक रिश्ता नीम के पेड़ जैसा भी रखना,
जो सीख भले ही कड़वी देता हो पर
तकलीफ में मरहम भी बनता है...
5- परिवर्तन से डरना और संघर्ष से कतराना,
मनुष्य की सबसे बड़ी कायरता है...
6- जीवन का सबसे बड़ा गुरु वक्त होता है,
क्योंकि जो वक्त सिखाता है वो कोई नहीं सीखा सकता...
7- बहुत ही सुन्दर वर्णन है-
मस्तक को थोड़ा झुकाकर देखिए....अभिमान मर जाएगा
आँखें को थोड़ा भिगा कर देखिए.....पत्थर दिल पिघल जाएगा
दांतों को आराम देकर देखिए.........स्वास्थ्य सुधर जाएगा
जिव्हा पर विराम लगा कर देखिए.....क्लेश का कारवाँ गुज़र जाएगा
इच्छाओं को थोड़ा घटाकर देखिए......खुशियों का संसार नज़र आएगा...
8- पूरी जिंदगी हम इसी बात में गुजार देते हैं कि "चार लोग क्या कहेंगे",
और अंत में चार लोग बस यही कहते हैं कि "राम नाम सत्य है"...

सुखी रहने का तरीका:

*सुखी रहने का तरीका*
*********************

      *एक बार की बात है एक संत अपने आश्रम में बैठे हुए थे। तभी उनका एक शिष्य, जो स्वाभाव से थोड़ा क्रोधी था उनके समक्ष आया और बोला-*

*गुरूजी, आप कैसे अपना व्यवहार इतना मधुर बनाये रहते हैं, ना आप किसी पे क्रोध करते हैं और ना ही किसी को कुछ भला-बुरा कहते हैं? कृपया अपने इस अच्छे व्यवहार का रहस्य बताइए?*

*संत बोले- मुझे अपने रहस्य के बारे में तो नहीं पता, पर मैं तुम्हारा रहस्य जानता हूँ !*

*“मेरा रहस्य! वह क्या है गुरु जी?” शिष्य ने आश्चर्य से पूछा।*

*”तुम अगले एक हफ्ते में मरने वाले हो!” संत दुखी होते हुए बोले।*

*कोई और कहता तो शिष्य ये बात मजाक में टाल सकता था, पर स्वयं संत के मुख से निकली बात को कोई कैसे काट सकता था?*

*शिष्य उदास हो गया और गुरु का आशीर्वाद ले वहां से चला गया।*

*उस समय से शिष्य का स्वभाव बिलकुल बदल सा गया। वह हर किसी से प्रेम से मिलता और कभी किसी पे क्रोध न करता, अपना ज्यादातर समय ध्यान और पूजा में लगाता। वह उनके पास भी जाता जिससे उसने कभी गलत व्यवहार किया था और उनसे माफ़ी मांगता। देखते-देखते संत की भविष्यवाणी को एक हफ्ते पूरे होने को आये।*

*शिष्य ने सोचा चलो एक आखिरी बार गुरु के दर्शन कर आशीर्वाद ले लेते हैं। वह उनके समक्ष पहुंचा और बोला-*

*गुरुजी, मेरा समय पूरा होने वाला है, कृपया मुझे आशीर्वाद दीजिये!”*

*“मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ है पुत्र। अच्छा, ये बताओ कि पिछले सात दिन कैसे बीते? क्या तुम पहले की तरह ही लोगों से नाराज हुए, उन्हें अपशब्द कहे?”*

*संत ने प्रश्न किया।*

*“नहीं-नहीं, बिलकुल नहीं। मेरे पास जीने के लिए सिर्फ सात दिन थे, मैं इसे बेकार की बातों में कैसे गँवा सकता था?*
*मैं तो सबसे प्रेम से मिला, और जिन लोगों का कभी दिल दुखाया था उनसे क्षमा भी मांगी” शिष्य तत्परता से बोला।*

*"संत मुस्कुराए और बोले, “बस यही तो मेरे अच्छे व्यवहार का रहस्य है।"*
*"मैं जानता हूँ कि मैं कभी भी मर सकता हूँ, इसलिए मैं हर किसी से प्रेमपूर्ण व्यवहार करता हूँ, और यही मेरे अच्छे व्यवहार का रहस्य है।*

*शिष्य समझ गया कि संत ने उसे जीवन का यह पाठ पढ़ाने के लिए ही मृत्यु का भय दिखाया था ।*

*वास्तव में हमारे पास भी सात दिन ही बचें हैं :-*

*रवि, सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि, आठवां दिन तो बना ही नहीं है ।*

👏👏  *"आइये आज से परिवर्तन आरम्भ करें।"* 👏👏

गहरी बात:

*_गहरी बात लिख दी है किसी ने_*
******Bat****He******Bat*****Me****
*बेजुबान पत्थर पे लदे है करोंडो के गहने मंदिरो में ।*
*उसी देहलीज पे एक रूपये को तरसते नन्हें हाथों को देखा है।*
*************************
*_सजे थे छप्पन भोग और मेवे मूर्ती के आगे ।_*
*_बाहर एक फ़कीर को भूख से तड़प के मरते देखा है ll_*
*************************
*लदी हुई है रेशमी चादरों से वो हरी मजार,*
*पर बाहर एक बूढ़ी अम्मा को ठंड से ठिठुरते देखा है।*
*************************
*_वो दे आया एक लाख गुरद्वारे में हॉल के लिए,_*
*_घर में उसको 500 रूपये के लिए काम वाली बाई बदलते देखा है।_*
*************************
*सुना है चढ़ा था सलीब पे कोई दुनिया का दर्द मिटाने को,*
*आज चर्च में बेटे की मार से बिलखते माँ बाप को देखा है।*
*************************
*_जलाती रही जो अखन्ड ज्योति देसी घी की दिन रात पुजारन,_*
*_आज उसे प्रसव में कुपोषण के कारण मौत से लड़ते देखा है ।_*
*************************
*जिसने नहीं दी माँ बाप को भर पेट रोटी कभी जीते जी ,*
*आज लगाते उसको भंडारे मरने के बाद देखा ll*
*************************
*_दे के समाज की दुहाई ब्याह दिया था जिस बेटी को जबरन बाप ने,_*
*_आज पीटते उसी शौहर के हाथों सरे बाजार देखा है ।_*
*************************
*मारा गया वो पंडित बेमौत सड़क दुर्घटना में यारों ,*
*जिसे खुद को काल सर्प,तारे और हाथ की लकीरों का माहिर लिखते देखा है*
*************************
*_जिस घर की एकता की देता था जमाना कभी मिसाल दोस्तों_*
*_आज उसी आँगन में खिंचती दीवार को देखा है।_*
*************************
*बंद कर दिया सांपों को सपेरे ने यह कहकर,*
*अब इंसान ही इंसान को डसने के काम आएगा।*
*************************
*_आत्महत्या कर ली गिरगिट ने सुसाइड नोट छोडकर,_*
*_अब इंसान से ज्यादा मैं रंग नहीं बदल सकता।_*
************************
*गिद्ध भी कहीं चले गए लगता है*
*उन्होंने देख लिया कि,इंसान हमसे अच्छा नोंचता है।*
************************
*_कुत्ते कोमा में चले गए,ये देखकर कि_*
*_क्या मस्त तलवे चाटते हुए इंसान को देखा है ।_*
*इस कविता को मैंने आप तक पहुंचाने में सिर्फ उंगली का उपयोग किया है और लिखने वाले को सादर नमन किया है

इच्छापूर्ति वृक्ष:

*इच्छापूर्ति वॄक्ष*

एक घने जंगल में एक इच्छापूर्ति वृक्ष था
*उसके नीचे बैठ कर किसी भी चीज की इच्छा करने से वह तुरंत पूरी हो जाती थी*
यह बात बहुत कम लोग जानते थे..
*क्योंकि उस घने जंगल में जाने की कोई हिम्मत ही नहीं करता था*

एक बार संयोग से एक थका हुआ इंसान उस वृक्ष के नीचे आराम करने के लिए बैठ गया उसे पता ही नहीं चला कि कब उसकी नींद लग गई
जब वह जागा तो उसे बहुत भूख लग रही थी
*उसने आस पास देखकर कहा ' काश कुछ खाने को मिल जाए ! तत्काल स्वादिष्ट पकवानों से भरी थाली हवा में तैरती हुई उसके सामने आ गई*
उस इंसान ने भरपेट खाना खाया और भूख शांत होने के बाद सोचने लगा..
*' काश कुछ पीने को मिल जाए.. तत्काल उसके सामने हवा में तैरते हुए कई तरह के शरबत आ गए शरबत पीने के बाद वह आराम से बैठ कर सोचने लगा ' कहीं मैं सपना तो नहीं देख रहा हूँ*
हवा में से खाना पानी प्रकट होते पहले कभी नहीं देखा ' न ही सुना..
*जरूर इस पेड़ पर कोई भूत रहता है जो मुझे खिला पिला कर बाद में मुझे खा लेगा  ऐसा सोचते ही तत्काल उसके सामने एक भूत आया और उसे खा गया.*

*इस प्रसंग से आप यह सीख सकते है कि हमारा मस्तिष्क ही इच्छापूर्ति वृक्ष है आप जिस चीज की प्रबल कामना करेंगे ' वह आपको अवश्य मिलेगी*
अधिकांश लोगों को जीवन में बुरी चीजें इसलिए मिलती हैं..
*क्योंकि वे बुरी चीजों की ही कामना करते हैं*
*इंसान ज्यादातर समय सोचता है..*
' कहीं बारिश में भीगने से मै बीमार न हों जाँऊ
*और वह बीमार हो जाता हैं..*

इंसान सोचता है ' कहीं मुझे व्यापार में घाटा न हों जाए?
*और घाटा हो जाता हैं..*

इंसान सोचता है ' मेरी किस्मत ही खराब है '
*और उसकी किस्मत सचमुच खराब हो जाती हैं ..*

इंसान सोचता है ' कहीं मेरा बाँस मुझे नौकरी से न निकाल दे..
*और बाँस उसे नौकरी से निकाल देता है*

इस तरह आप देखेंगे कि आपका अवचेतन मन इच्छापूर्ति वृक्ष की तरह आपकी इच्छाओं को ईमानदारी से पूर्ण करता है

*इसलिए आपको अपने मस्तिष्क में विचारों को सावधानी से प्रवेश करने की अनुमति देनी चाहिए*

अगर गलत विचार अंदर आ जाएगे तो गलत परिणाम मिलेंगे.
*विचारों पर काबू रखना ही अपने जीवन पर काबू करने का रहस्य है*
*आपके विचारों से ही आपका जीवन या तो..
*स्वर्ग बनता है या नरक..* उनकी बदौलत ही आपका जीवन..
*सुखमय या दुख:मय बनता है..*
विचार जादूगर की तरह होते है '
*जिन्हें बदलकर आप अपना जीवन बदल सकते है..*

जिनकी इच्छा शक्ति दृढ़ होती हैं..
*' वे सांसारिक दौलत के नुकसान की कभी शिकायत नहीं करते*

डर हमको भी लगता है रस्ते के सन्नाटे से लेकिन एक सफ़र पर ऐ दिल अब जाना तो होगा

 [8:11 AM, 8/24/2023] Bansi Lal: डर हमको भी लगता है रस्ते के सन्नाटे से लेकिन एक सफ़र पर ऐ दिल अब जाना तो होगा [8:22 AM, 8/24/2023] Bansi La...