वो सूफ़ी का क़ौल हो या पंडित का ज्ञान
जितनी बीते आप पर उतना ही सच मान
—निदा फ़ाज़ली
तुम क्या जानो उस दरिया पर क्या गुज़री
तुमने तो बस पानी भरना छोड़ दिया
सफर कुछँ यूँ चला उन थोड़े से लम्हों में ,
वो अंधेरो मे गूम हो गयें और हम उजालें मे बदनाम
मानव संबंधो में
सबसे बड़ी ग़लती,, हम आधा सुनते हैं, चौथाई समझते हैं, शून्य सोचते हैं
लेकिन प्रतिक्रिया दुगुनी करते हैं..
झुठे इन्सान कि ऊंची आवाज
सच्चे इन्सान को खामोश करा देती है
लेकिन सच्चे इन्सान की खामोशी
झुठे इन्सान की बुनियाद हिला देती है..
जितनी बीते आप पर उतना ही सच मान
—निदा फ़ाज़ली
तुम क्या जानो उस दरिया पर क्या गुज़री
तुमने तो बस पानी भरना छोड़ दिया
सफर कुछँ यूँ चला उन थोड़े से लम्हों में ,
वो अंधेरो मे गूम हो गयें और हम उजालें मे बदनाम
मानव संबंधो में
सबसे बड़ी ग़लती,, हम आधा सुनते हैं, चौथाई समझते हैं, शून्य सोचते हैं
लेकिन प्रतिक्रिया दुगुनी करते हैं..
झुठे इन्सान कि ऊंची आवाज
सच्चे इन्सान को खामोश करा देती है
लेकिन सच्चे इन्सान की खामोशी
झुठे इन्सान की बुनियाद हिला देती है..
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