Friday, 3 January 2020

घर से निकल कर जाता हूँ मैं रोज़ कहाँ

 घर से निकल कर जाता हूँ मैं रोज़ कहाँ  
इक दिन अपना पीछा कर के देखा जाए

मुसलसल हादसों से बस मुझे इतनी शिकायत है,
कि ये आँसू बहाने की भी तो मोहलत नहीं देते...

 कोई चराग़ जलाता नहीं सलीक़े से,
मगर सभी को शिकायत हवा से होती है

 “न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा 
 हमारे पाँव का काँटा हमीं से निकलेगा  “

- राहत इंदोरी

जब तक आत्मविश्वास रूपी सेनापति आगे नहीं बढ़ता,
तब तक आपकी आतंरिक शक्तिया उसका मुह ताकती है !!

ग़म-ए-ज़माना ने मजबूर कर दिया वर्ना..
ये आरज़ू थी कि बस तेरी आरज़ू करते..!!

जिंदगी  छूकर  जाती  है,
     कुछ  न  कुछ...
....खराश  छोड़  जाती  है..


पल एक पल यू थम सा गया,
तू इश्क़ के सारे रंग दे गया

ज़िद भी नहीं, जुनूँ भी नहीं, वहशत भी नहीं है 
फिर जो कर रहे हो मियाँ, मुहब्बत भी नहीं है

कोई शिकवा...न ग़म...न कोई याद...
बैठे बैठे बस...आंख भर आई...

कोई जिस्म को छुए बिना
आत्मा से लिपट जाए वही प्रेम है

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