ग़ज़ल सी है...... तेरी आंखें,
कितना भी तुम छुपा लो... ये हकीकत बयां कर देती...!!
तुझको बेहतर बनाने की कोशिश में,
तुझे ही वक्त नहीं दे पा रहे हम..
माफ करना ऐ जिंदगी,
तुझे ही नहीं जी पा रहे हम..!
जब किसी बात से हैरत न हो समझो
रोने का सलीक़ा आ गया....!
"दबी है आवाज़ दोनों के दरमियां तो क्या"
"बातें तो, ख़ामोश ख़्वाहिशें भी करती है"
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