कभी कभी तो छलक पड़ती हैं यूँही आँखें
उदास होने का कोई सबब नहीं होता
“बनावट हो तो ऐसी हो कि जिस से सादगी टपके..”
“वो बात सारे फ़साने में जिस का ज़िक्र न था
वो बात उन को बहुत ना-गवार गुज़री है”
—फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
यूँ शब्दों में पिरो देना चाहते हैं ..... अपनी खामोशियो को....
जब भी लिखें , तुम्हारी ही महक से.. महक जाएँ हम.........!
उदास होने का कोई सबब नहीं होता
“बनावट हो तो ऐसी हो कि जिस से सादगी टपके..”
“वो बात सारे फ़साने में जिस का ज़िक्र न था
वो बात उन को बहुत ना-गवार गुज़री है”
—फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
यूँ शब्दों में पिरो देना चाहते हैं ..... अपनी खामोशियो को....
जब भी लिखें , तुम्हारी ही महक से.. महक जाएँ हम.........!
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