काफ़ी है मिरे दिल की तसल्ली को यही बात
आप आ न सके आप का पैग़ाम तो आया
- शकील बदायुनी
चल समेट ले फ़िर
दामन की तलाश खत्म करे...
कैद कर लो इश्क़ की सलाखों मे
के ये आजादी हमे रास नहीं आती
यकीनन वो शख्स..कुछ दिन और जीया होता..,
गर श्मशान पहुँचाने वाले कँधे..उसे पहले मिले होते..!!
बहुत चुपके से दिया था....
उसने गुलाब हमें ..
कमबख्त खुशबू ने कोहराम मचा दिया
" यहाँ तो अपनी सांसे तक अपनी नहीं और
में इस दुनिया में अपनापन ढूँढ रहा था "
आप आ न सके आप का पैग़ाम तो आया
- शकील बदायुनी
चल समेट ले फ़िर
दामन की तलाश खत्म करे...
कैद कर लो इश्क़ की सलाखों मे
के ये आजादी हमे रास नहीं आती
यकीनन वो शख्स..कुछ दिन और जीया होता..,
गर श्मशान पहुँचाने वाले कँधे..उसे पहले मिले होते..!!
बहुत चुपके से दिया था....
उसने गुलाब हमें ..
कमबख्त खुशबू ने कोहराम मचा दिया
" यहाँ तो अपनी सांसे तक अपनी नहीं और
में इस दुनिया में अपनापन ढूँढ रहा था "
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