देश में "राजा"
समाज में "गुरु"
परिवार में "पिता"
घर में "स्त्री"
जीवन में दोस्त ये कभी "साधारण" नहीं होते
~ निर्माण और प्रलय इन्हीं के "हाथ" में होता है..
इलाज ना ढूंढ तू इश्क़ का वो होगा ही नहीं
इलाज मर्ज का होता है इबादत का नहीं
“ एक दूरी बनाए रखनी थी
सबसे नज़दीकियाँ निभाते हुए “
उसका पलट कर देखना कोई इश्क़ नही था
वो तो ये देख रही थी कि मैं संभला कि नहीं ...
वो जो तेरे नाम की कसम
जूठी खा रहे ...
वो जो कभी तुझको अपनी
ज़िंदगी कहा करतें थे...!!
किसी से नजदीकीयाँ बनाये रखनी है न
तो... दूरियाँ पर्याप्त बनाये रखेँ. . . .!
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