कल सामने मंज़िल थी पीछे मेरी आवाज़ें
चलता तो बिछड़ जाता रुकता तो सफ़र जाता
बात सिर्फ अल्फाजो की थी..
"साहब "
जज़्बात तो तुम..
वैसे भी समझते नहीं..
मैं ऐसे मोड़ पर अपनी कहानी छोड़ आया हूँ
किसी की आँख में पानी ही पानी छोड़ आया हूँ
न किसी हमसफ़र न हमनशीं से निकलेगा,
हमारे पाँव का काँटा हमीं से निकलेगा । -राहत इन्दौरी
किसी काम को करने के बारे में बहुत देर तक सोचते रहना अकसर उसके बिगड़ जाने का कारण बनता है।
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