दिल में "बुराई" रखने से बेहतर है, कि "नाराजगी" जाहिर कर दो ।
जहाँ दूसरों को "समझाना" कठिन हो, वहाँ खुद को समझ लेना ही बेहतर है ।
"खुश" रहने का सीधा सा एक ही "मंत्र" है, कि "उम्मीद" अपने आप से रखो, किसी और से नहीं..।
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