Tuesday, 24 May 2016

वाणी का व्यवहार:

एक राजा थे। बन-विहार को निकले। रास्ते में प्यास लगी। नजर दौड़ाई एक अन्धे की झोपड़ी दिखी। उसमें जल भरा घड़ा दूर से ही दीख रहा था।
राजा ने सिपाही को भेजा और एक लोटा जल माँग लाने के लिए कहा।

सिपाही वहाँ पहुँचा और बोला- ऐ अन्धे एक लोटा पानी दे दे।

अन्धा अकड़ू था।

उसने तुरन्त कहा- चल-चल तेरे जैसे सिपाहियों से मैं नहीं डरता। पानी तुझे नहीं दूँगा। सिपाही निराश लौट पड़ा।

इसके बाद सेनापति को पानी लाने के लिए भेजा गया। सेनापति ने समीप जाकर कहा अन्धे। पैसा मिलेगा पानी दे।

अन्धा फिर अकड़ पड़ा। उसने कहा, पहले वाले का यह सरदार मालूम पड़ता है। फिर भी चुपड़ी बातें बना कर दबाव डालता है, जा-जा यहाँ से पानी नहीं मिलेगा।

सेनापति को भी खाली हाथ लौटता देखकर राजा स्वयं चल पड़े।

समीप पहुँचकर वृद्ध जन को सर्वप्रथम नमस्कार किया और कहा- ‘प्यास से गला सूख रहा है।

एक लोटा जल दे सकें तो बड़ी कृपा होगी।’
अंधे ने सत्कारपूर्वक उन्हें पास बिठाया और कहा- ‘आप जैसे श्रेष्ठ जनों का राजा जैसा आदर है।

जल तो क्या मेरा शरीर भी स्वागत में हाजिर है। कोई और भी सेवा हो तो बतायें।

राजा ने शीतल जल से अपनी प्यास बुझाई फिर नम्र वाणी में पूछा-
‘आपको तो दिखाई पड़ नहीं रहा है, फिर जल माँगने वालों को सिपाही, सरदार और राजा के रूप में कैसे पहचान पाये?’

अन्धे ने कहा- “वाणी के व्यवहार से हर व्यक्ति के वास्तविक स्तर का पता चल जाता है।”

दोस्तो वाणी उस तीर की तरह हाेती हैं, जाे एक बार कमान(धनुष) से निकलने के बाद वापस नहीं आती। इस लिए जब भी कुछ बाेलाे बहुँत सोच-समझ कर बाेलाे, आपकी वाणी में ऐसा मिठास हाें की सुनने वाला गदगद़(खुश) हाे जायें। ऐसी वाणी कभी ना बाेलाे, जिससे किसी काे दुःख पहुँचे।

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