Monday, 16 May 2016

अब तमन्ना नहीं:

अब जो रिश्तोँ में घिरा हूँ तो खुला है मुझ पर
कब परिंदे उड़ नहीं पाते हैं परों के होते

अब घर भी नहीं घर की तमन्ना भी नहीं है
मुद्दत हुई सोचा था कि घर जाएँगे इक दिन

जो कहता है कि कोई काम किया नहीँ जा सकता, उसे चाहिऐ क़ि करने वाले को रोके टोके नहीँ।

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