एक बहुत बडे झेन आचार्य लिंची कहा करते थे :
मैं जब युवा था तो मुझे नौका—विहार का बहुत शौक था। मेरे पास एक छोटी सी नाव थी और उसे लेकर मैं अक्सर अकेला झील की सैर करता था। मैं घंटों झील में रहता था।
एक दिन ऐसा हुआ कि मैं अपनी नाव में आंख बंद कर सुंदर रात पर ध्यान कर रहा था। तभी एक खाली नाव उलटी दिशा से आई और मेरी नाव से टकरा गई। मेरी आंखें बंद थीं, इसलिए मैंने मन में सोचा कि किसी व्यक्ति ने अपनी नाव मेरी नाव से टकरा दी है और मुझे क्रोध आ गया।
मैंने आंखें खोलीं और मैं उस व्यक्ति को क्रोध में कुछ कहने ही जा रहा था कि मैंने देखा कि
दूसरी नाव खाली है। अब मुझे कुछ करने का कोई उपाय न रहा। किस पर यह क्रोध प्रकट करूं?
नाव तो खाली है! और वह नाव धार के साथ
बहकर आई थी और मेरी नाव से टकरा गई थी। अब मेरे लिए कुछ भी करने को न रहा। एक खाली नाव पर क्रोध उतारने की कोई
संभावना न थी। तब फिर एक ही उपाय बाकी रहा। मैंने आंखें बंद कीं और अपने क्रोध को पकड़कर उलटी दिशा में बहना शुरू किया और वह खाली नाव मेरे आत्मज्ञान का कारण बन गई। उस मौन रात में मैं अपने भीतर, अपने केंद्र पर पहुंच गया। वह खाली नाव मेरा आचार्य थी और फिर लिंची ने कहा, अब जब कोई आदमी मेरा अपमान करता है तो मैं हंसता हूं और कहता हूं कि यह नाव भी खाली है। मैं आंखें बंद करता हूं और अपने भीतर चला जाता हूं।
Friday, 6 May 2016
ओशो:
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
डर हमको भी लगता है रस्ते के सन्नाटे से लेकिन एक सफ़र पर ऐ दिल अब जाना तो होगा
[8:11 AM, 8/24/2023] Bansi Lal: डर हमको भी लगता है रस्ते के सन्नाटे से लेकिन एक सफ़र पर ऐ दिल अब जाना तो होगा [8:22 AM, 8/24/2023] Bansi La...
-
" जहाँ रौशनी की ज़रूरत हो चिराग वहीँ जलाया करो, सूरज के सामने जलाकर उसकी औकात ना गिराया करो...!" सहमी हुई है झोपड़ी, बार...
-
[6:38 AM, 9/16/2022] Bansi lal: छाता लगाने का मतलब ये नहीं कि आप बच गये, डुबाने वाला पानी सिर से नहीं हमेशा पैर से आता है। [7:10 AM, 9/16/...
-
[5/11, 6:17 AM] Bansi lal: बेगुनाह कोई नहीं, सबके राज़ होते हैं, किसी के छुप जाते हैं, किसी के छप जाते हैं। [5/11, 6:17 AM] Bansi lal: अपने...
No comments:
Post a Comment