ज़ालिम था वो और ज़ुल्म की आदत भी बहुत थी
मजबूर थे हम उस से मोहब्बत भी बहुत थी
तूफानों से पेड़ों की जड़ें और गहरी व मज़बूत होती है।
किसी ने धूल क्या झोंकी आखों में...
कम्बख़्त पहले से बेहतर दिखने लगा
मंजिल का नाराज
होना भी जायज था,
हम भी तो अजनबी
राहों से दिल लगा बैठे थे...
जब बेवज़ह कोई इल्ज़ाम लग जाए तो क्या कीजिये,
हुज़ूर फिर यूँ कीजिये
कि वो गुनाह कर ही लीजिये...
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