एक व्यक्ति जीवन में आने वाली परेशानियों से बहुत दुखी था।
उसे अपने दुखों के बीच जीने का कोई अर्थ समझ नहीं आ रहा था।
वह डूबकर आत्महत्या करने नदी किनारे पहुंच गया, वह नदी में कूदने ही वाला था कि किसी मजबूत हाथ ने उसे पकड़कर पीछे खींच लिया।
व्यक्ति को आत्महत्या से रोकने वाले उस नदी किनारे झोपड़ी में रहने वाले एक साधु बाबा थे।
युवक क्रोधित होते हुए साधु बाबा से बोला:- ‘आपने मुझे क्यों बचा लिया?
इतने दुखों के बीच मैं जिंदा नहीं रह सकता।’
साधु बाबा ने उस व्यक्ति की बात कोई जवाब नहीं दिया और कहा, ‘तुम पानी पियो।’
साधु बाबा ने अपने थैले से एक कटोरी निकाली, उसमें पानी भरा और एक चुटकी नमक डाल दिया।
पानी का एक घूंट पीकर युवक ने कहा:- ‘यह मैं नहीं पी सकता, इसमें बहुत नमक है।’
साधु बाबा ने कहा:- ‘चलो, फिर नदी का पानी पी लो, लेकिन जरा ठहरो।’
यह कहकर साधु बाबा ने नदी में एक चुटकी नमक डाल दिया।
युवक ने पानी पिया, साधु बाबा ने पूछा:- ‘कैसा था पानी?’
युवक बोला:- ‘यह तो बहुत मीठा है।’
अब साधु बाबा ने उसे समझाया:- ‘जिन दुखों से डरकर तुम आत्महत्या करने जा रहे थे, वे तो बस चुटकी भर नमक की तरह हैं।
लेकिन अभी तुम कटोरी की तरह हो, जिसमें यह नमक ज्यादा लग रहा है।
जिस दिन तुम नदी बन जाओगे, यह दुखों का नमक तुम्हें नगण्य लगने लगेगा।’
हमें खुद को इतना योग्य और बड़ा बनाना होगा, ताकि दुखों का हमारे ऊपर प्रभाव न पड़ सके।
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