Wednesday, 4 December 2019

जहां तक रास्ता ले जाए चले जा

 जहां तक रास्ता ले जाए चले जा 
तेरी मंजिल के तो दावेदार बहुत है

 रुतबा तो खामोशियों का होता है
अल्फ़ाज़ तो बदल जाते है लोग देखकर

रख लो आईने हज़ार , तसल्ली के लिए 
पर सच के लिए तो , आँखें ही मिलानी प़डेगी 

खुद से भी और खुदा से भी..
 ख़ामोशी में चाहे जितना बेगाना-पन हो 

लेकिन इक आहट जानी-पहचानी होती है
शब्दों" को दो ही लोग ढंग से पढ़ते और समझते हैं..

ज्ञान प्राप्त करने वाले,
और ग़लती निकालने वाले..

मेरे    आँसू    भी   है़रान   हुए   जाते   हैं
मैं रोने की ह़द तक जाकर लौट आता हूँ

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