Thursday, 19 December 2019

"उम्र में, ओहदे में, कौन कितना बड़ा है, फर्क नही पड़ता

 ये मत समझ के तेरे काबिल नहीं हैं हम,
तड़प रहें हैं वो जिन्हें हासिल नहीं हैं हम

“जिस सादगी ने मुझे कहीं का नहीं रखा
वो आज कह रही है कुछ तो गुनाह कर..

"उम्र में, ओहदे में,  कौन कितना बड़ा है,  फर्क नही पड़ता 
सजदे में, लहजे में,  कौन कितना झुकता है,  बहुत फर्क पड़ता है....."

 अगर ज़िन्दगी का साथी लाचार हो जाए
तो उसे छोड़ा नहीं, संभाला जाता हैं..

अधिक दूर देखने की चाहत में...     
बहुत कुछ पास से गुज़र जाता है....


रौशनी की दुहाई देते हैं 
अब चिराग़ों को बुझाने वाले

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