Thursday 30 May 2019

इंसाँ की ख़्वाहिशों की कोई इंतिहा नहीं


इंसाँ की ख़्वाहिशों की कोई इंतिहा नहीं
दो गज़ ज़मीं भी चाहिए दो गज़ कफ़न के बाद
रोज़ मिट्टी में कहां जान पड़ा करती है...
इश्क सदियों में कोई ताजमहल देता है..!!
गिला भी तुझसे बहुत है मगर मुहब्बत भी,
वो बात अपनी जगह है ये बात अपनी जगह
ख्वाहिशें नहीं होती किसी उम्र की मोहताज...
कुछ शौक अगर जिंदा है तो  सांसें भी कम पड़ जाती है.....!!

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