एक उम्र अपने बच्चों को उँगली थमाई फिर।।
बूढ़े ने एक दुकान से लाठी ख़रीद ली।।
मैं संग-ए-रह हूँ तो ठोकर की ज़द पे आऊँगा..
तुम आईना हो तो फिर टूटना ज़रूरी है..!!
तुम आईना हो तो फिर टूटना ज़रूरी है..!!
न सोचो तर्क-ए-तअल्लुक़ के मोड़ पर रुक कर.. क़दम बढ़ाओ कि ये हादसा ज़रूरी है..!!
तुम तब तब ही! ग़ैर लगे हो
जब दिल को लगा अपने हो
फ़ासलों का हम, कोई छोर ढूँढ रहे हैं..
सबर रखिये.... के आप तक पहुँच रहे हैं..
यूँ तो तंज़ कसनेवालों ने , कभी कोई कमी ना की ,
हमने भी मगर कमर कसी और अपनी मंजिल की ओर चल दिये ,,,
No comments:
Post a Comment