बड़े घरों में रही है बहुत ज़माने तक,
ख़ुशी का जी नहीं लगता ग़रीब-ख़ाने में...
कहीं ज़मीं से तअल्लुक़ न ख़त्म हो जाए
बहुत न ख़ुद को हवा में उछालिए साहिब
इस तरह होश गँवाना भी कोई बात नहीं
और यूँ होश से रहने में भी नादानी है
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