दरिया के तलातुम से तो बच सकती है कश्ती
कश्ती में तलातुम हो तो साहिल न मिलेगा ।
तलातुम - dashing of waves
बे-वजह शर्तें सुना देते हो तुम मुझे "इश़्क" की
कभी देखते क्यों नहीं "तुझमें"ही कैद हूँ "मैं"..!!!
फूल तो फूल हैं आँखो से घिरे रहते हैं
काँटे बेकार हिफाज़त में लगे रहते हैं
तेरे सिवा भी कई रंग ख़ुशनज़र थे मगर
जो तुझको देख चुका हो वो और क्या देखे ।
ये दुख नहीं कि अँधेरों से सुलह की हमने
मलाल ये है कि अब सुबह की तलब भी नहीं।
दो गज ही चाहिए
तो सिकँदर हो जाओ ,
अगर पूरी क़ायनात चाहिए
तो कबीर होना होगा .
मैं चुप रहा तो गलतफहमियां और बढ़ी,
वो भी सुना है उसने जो मैंने कहा नहीं
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