Thursday, 4 July 2019

सफ़र की हद है वहाँ तक कि कुछ निशान रहे,


सफ़र की हद है वहाँ तक कि कुछ निशान रहे,
चले चलो के जहाँ तक ये आसमान रहे......




मुस्कुराने की आदत भी कितनी महंगी पड़ी मुझको,
भुला दिया सबने ये कहकर की तुम तो अकेले भी
ख़ुश रह लेते हो....।
पाँव सूखे हुए पत्तों पर अदब से रखना,
धूप में माँगी थी तुमने पनाह इनसे कभी.

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