Thursday, 4 July 2019

ज़ेहन की क़ैद से आज़ाद किया जाए उसे

 ज़ेहन की क़ैद से आज़ाद किया जाए उसे,
जिस को पाना नहीं क्या याद किया जाए उसे
इस शहर में जीने के अंदाज़ निराले हैं,
होंटों पे  लतीफ़े हैं  आवाज़ में छाले है
सियासत को लहू पीने की आदत है .
बाकी मुल्क मेँ सब खैरियत है.
मुनासिब समझो तो हाल-ए-दिल बयाँ कर दो..
सुना हैं ये चुप्पियाँ.......भी तबाह कर देती हैं....!!
अपनी आहट पे चौंकता हूँ मैं
किस की दुनिया में आ गया हूँ मैं...
देखिए ना तेज़ कितनी उम्र की रफ़्तार है
ज़िंदगी में चैन कम और फ़र्ज़ की भर-मार है...
होश  का पानी  छिड़को   मदहोशी  की
आंखो  पर
अपनों  से ना  उलझो  ग़ैरों  की  बातों  पर..
सख्त हाथों से भी कभी छूट जाती  हैं उंगलियां,
रिश्ते जोर से नहीं तमीज़ से थामें जाते हैं.
"We are all so affected by fear what we think more of failure than of success, more of sadness than of happiness"

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