इक दिन तू आ के मेरी मन्नत की लाज रख ले
कब से उजाड़ता हूँ महफ़िल सजा सजा के
कब से उजाड़ता हूँ महफ़िल सजा सजा के
Never judge a book by its cover
वक़्त के कितने ही रंगों से गुज़रना है अभी,
ज़िंदगी है तो कई तरह से मरना है अभी...
ज़िंदगी है तो कई तरह से मरना है अभी...
उसे जाने की जल्दी थी सो आँखो ही आंखों में
जहाँ तक छोड़ सकता था वही तक छोड़ आया हूँ...
जहाँ तक छोड़ सकता था वही तक छोड़ आया हूँ...
सर-ए-आगाज़ दिल की दास्ताँ में वो नहीं था,,,,
मगर महसूस अब उस की कमी होने लगी है
सदायें डूबती है जब...
खामोशी मुस्कुराती है!
क्या नुमाइश लगाऊं अपने मैं तजुर्बों की
इतना ही काफी है कि संभल गया हूं मैं
इतना ही काफी है कि संभल गया हूं मैं
दुनिया वो किताब है जो पढी नहीं जा सकती
लेकिन जमाना वो उस्ताद है जो सब कुछ सिखा देता है ....
आखरी बार तुम पे आया था...
फिर मेरे हाथ दिल नहीं आया!!
“रहमतों की कमी नहीं..
रब के खजाने में..
रब के खजाने में..
झांकना खुद की झोली में है..
कहीं कोई 'सुराख' तो नहीं..”
कहीं कोई 'सुराख' तो नहीं..”
हम दरख़्तों को कहाँ आता है हिजरत करना
तुम परिंदे हो चमन छोड़ के जा सकते हो...
तुम परिंदे हो चमन छोड़ के जा सकते हो...
हकीकत में खामोशी कभी भी चुप नहीं रहती,
कभी तुम ग़ौर से सुनना बहुत किस्से सुनाती है...!!!!
"खुशी देने में ही खुशी प्राप्त करना सभी कलाओं का सार है।"
दर्द का असली पता आंसुओं में ही नहीं
कभी कभी मुस्कुराहटों के पीछे होता है
कभी कभी मुस्कुराहटों के पीछे होता है
“झरनों से इतना मधुर संगीत कभी न सुनाई देता ...
अगर राहों में उनके पत्थर न होते”
अगर राहों में उनके पत्थर न होते”
सारी गवाहियाँ तो मेरे हक़ में आ गईं
लेकिन मेरा बयान ही मेरे ख़िलाफ़ था।
No comments:
Post a Comment