Sunday, 14 July 2019

मुश्किलों को आखिर कौन चुनता है,


मुश्किलों को आखिर कौन चुनता है,
आसां है किसी को समझने से बेहतर
उससे रूठ जाना !!
नए किरदार आते जा रहे हैं
मगर नाटक पुराना चल रहा है
कह देना समंदर से हम ओस के मोती हैं,
  दरिया की तरह तुझसे मिलने नहीं आयेंगे .
दुखाकर दिलो को लोग
पत्थरों में खुदा ढूंढते है
हज़ारों ना-मुकम्मल हसरतों के बोझ तले,
यह जो दिल धड़कता है कमाल करता है
कुछ यादे बारिश के इन बूंदों की तरह होती है
छू तो सकते है पर बस में नही होती
 क़ुबूलियत की यहां कौन फ़िक्र करता है
तु  वो  दुआ  है  जिसे  मांगना  ज़रूरी है

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