ख़ुदा ने बख़्शा है क्या ज़र्फ़ मोमबत्ती को
पिघलते रहना मगर सारी रात चुप रहना
आँखे बंद करने से....
मुसीबत नहीं टलती .......!
और .....
मुसीबत आए बिना .....
आँखे नहीं खुलती.......
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जिन दरख्तों ने उठाये थे बोझ झूलों के,
ज़रा सा डाल क्या झुकी काट डाले गये।
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न रुकी वक़्त की गर्दिश और न ज़माना बदला
पेड़ सूखा तो परिन्दों ने, ठिकाना बदला
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जो मेरे शहर में रौशनी लाये है
उन चरागों ने घर भी जलाये है
हाथ यकीनन हुए होंगे ज़ख़्मी
जिसने कांटे राहों मे बिछाये हैं
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प्यार एक आत्मिक,अलौकिक,रूहानी अहसास है..एक महीन साँसों का बंधन..जो एक रूह को छूकर गुज़रता है और दूसरी रूह को छूता हुआ दिलों में जा समाता है
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कह रहा है शोर-ए-दरिया से समुंदर का सुकूत
जिस का जितना ज़र्फ़ है उतना ही वो ख़ामोश है
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"विषम परिस्थितियों के कठोर प्रहारों से ही चरित्र का निर्माण होता है। "
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क़ुसूर हो तो हमारे हिसाब में लिख जाए ...
मोहब्बतों में जो एहसान हो, तुम्हारा हो ..!
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नसीहत देता हूँ इसका मतलब ये नही की मैं समझदार हुँ....
बस मैंने गलतिया आपसे ज्यादा की है....
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