"सफ़लता ने कई व्यक्तियों को विफल कर दिया है।"
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कुछ ग़ज़लें उन ज़ुल्फ़ों पर हैं, कुछ ग़ज़लें उन आँखों पर
जाने वाले दोस्त की अब इक यही निशानी बाक़ी है
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"वक्त" दिखाई नही देता....
लेकीन "दिखा" बहुत कुछ देता है....
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शाम ख़ामोश है पेड़ों पे उजाला कम है
लौट आए हैं सभी, एक परिंदा कम है
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वो आज मशहूर हो गए जो कभी काबिल न थे,
मंजिले उनको मिली जो दौड़ में कभी शामिल न थे
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इस बस्ती में कौन हमारे आँसू पोंछेगा
जो मिलता है उस का दामन भीगा लगता है
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जी रहे हैं आफ़ियत* में तो हुनर ख़्वाबों का है
अब भी लगता है कि ये सारा सफ़र ख़्वाबों का है
(सुख/चैन*)
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ये सब तो दुनिया में होता रहता है
हम ख़ुद से बे-कार उलझने लगते हैं
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फ़ज़ा में उड़ते परिंदों को भी नहीं मालूम
कि बाग़बाँ ने बिछाए हैं अब के जाल बहुत
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मुझे भी यूँ तो बड़ी आरज़ू है जीने की
मगर सवाल ये है किस तरह जिया जाए
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बुरा हूँ मै ये तो सब जानते है,
पर आज तक किसी के साथ बुरा नही किया ,
ये सिर्फ मै जानता हूँ ।
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