मेरी समंदर से मुहब्बत, कुछ उसके साहिलों की है |
रेत के हर जर्रे में कहानी, कितने ही काफिलों की है |
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:काफ़िले रेत हुए दश्त जुनून में कितने,
फिर भी आवारा मिज़ाजों का सफ़र जारी है...
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कश्ती का ज़िम्मेदार फ़क़त नाख़ुदा नहीं
कश्ती में बैठने का सलीक़ा भी चाहिए
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