बुझती हुई सुब्हें हों कि जलती हुई रातें,
तुझ से ये मुलाक़ात सर-ए-शाम बहुत है !
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और क्या चाहती है गर्दिश-ए-अय्याम कि हम
अपना घर भूल गए उन की गली भूल गए
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साफ़ दामन का दौर कब का गुज़र गया जनाब,
अब तो अपने धब्बों पे गरूर करते हैं लोग...
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अज़ीज़ इतना ही रक्खो कि जी सँभल जाए
अब इस क़दर भी न चाहो कि दम निकल जाए
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उम्र कहती है चलो अब संजीदा हुआ जाये,
दिल कहता है अब बची ही कितनी है, चलो कुछ नादानियां की जाएँ...
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"A lie can travel around the world while the truth is putting on his shoes."
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Bansi Lal: "A wise man should have money in his head, but not in his heart."
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