जला हुआ जंगल छुप कर रोता रहा तन्हाई में,
लकड़ी उसी की थी,उस दियासलाई में !
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अजब मुकाम पे ठहरा हुआ है काफिला जिंदगी का,
सुकून ढूढनें चले थे, नींद भी गवाँ बैठे...
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गुमनाम थे तो सब की तरफ़ देखते थे हम
शोहरत मिली तो अपनी ख़ुदी में सिमट गए
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