Monday, 29 May 2017

मुखालफत से मेरी शख्सियत:

मुख़ालफ़त से मेरी शख़्सियत सँवरती है...

मैं दुश्मनों का बड़ा एहतिराम करता हूँ...
🌹🌷🌹
वो कोई दोस्त था, अच्छे दिनों का

जो पिछली रात से याद आ रहा है
🌷🌹🌷
दिया ख़ामोश है लेकिन किसी का दिल तो जलता है

चले आओ जहाँ तक रौशनी मालूम होती है
🌹🌷🌹
*हर गुनाह कबूल है हमे,*

*बस सजा देने वाला बेगुनाह* *हो..!!*

🌷🌹🌷

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