Thursday 8 September 2016

या दिल, तू अब पिटेगा मेरे हाथों:

हज़ारो मैं मुझे सिर्फ़ एक वो शख्स चाहिये..
जो मेरी ग़ैर मौजूदगी मैं, मेरी बुरायी ना सुन सके

जब भी मिलती है मुझे अजनबी लगती क्यूँ है ||
ज़िन्दगी रोज़ नए रंग बदलती क्यूँ है||

ये मज़ा है दुश्मनी में न है लुत्फ़ दोस्ती में ||
कोई ग़ैर ग़ैर होता कोई यार यार होता       ||

फिर उसी शख़्स से उम्मीद ए वफ़ा?
ऐ दिल, तू अब पिटेगा मेरे हाथों..

आते लम्हों को ध्यान में रखिये,
तीर कुछ तो कमान में रखिये

"Tears on the linoleum floor;
Pain sewn into the staid armchair'

Cries in the hallway;
Happiness pushed into the corner'

of the dusty book shelf;
True emotions pulverized'

Words left unspoken."

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