काश तुम ये समझ पाते..
की इस कम्भख्त 'काश' से..
रोज़ कितना लड़ता हूँ मैं..
चलो कोई तो हरकत नई करो बिस्मिल
इश्क़ में नज़र मिलाना तो बात पुरानी हुई
" The more time you spend thinking about things that could make you happy, the less time you have to actually do the things you already know will make you happy."
थोड़ी मस्ती थोड़ा सा ईमान बचा पाया हूँ,
ये क्या कम है मैं अपनी पहचान बचा पाया हूँ,
कुछ उम्मीदें, कुछ सपने, कुछ महकती यादें,
जीने का मैं इतना ही सामान बचा पाया हूँ!
कैसे कह दूँ कि थक गया हूँ मैं..
न जाने किस -किस का हौसला हूँ मैं...
आंखों में जल रही है जबसे तेरी शमा मेरे रूह की
गलियों में अंधेरा नहीं होता
No comments:
Post a Comment