*_गहरी बात लिख दी है किसी ने_*
******Bat****He******Bat*****Me****
*बेजुबान पत्थर पे लदे है करोंडो के गहने मंदिरो में ।*
*उसी देहलीज पे एक रूपये को तरसते नन्हें हाथों को देखा है।*
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*_सजे थे छप्पन भोग और मेवे मूर्ती के आगे ।_*
*_बाहर एक फ़कीर को भूख से तड़प के मरते देखा है ll_*
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*लदी हुई है रेशमी चादरों से वो हरी मजार,*
*पर बाहर एक बूढ़ी अम्मा को ठंड से ठिठुरते देखा है।*
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*_वो दे आया एक लाख गुरद्वारे में हॉल के लिए,_*
*_घर में उसको 500 रूपये के लिए काम वाली बाई बदलते देखा है।_*
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*सुना है चढ़ा था सलीब पे कोई दुनिया का दर्द मिटाने को,*
*आज चर्च में बेटे की मार से बिलखते माँ बाप को देखा है।*
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*_जलाती रही जो अखन्ड ज्योति देसी घी की दिन रात पुजारन,_*
*_आज उसे प्रसव में कुपोषण के कारण मौत से लड़ते देखा है ।_*
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*जिसने नहीं दी माँ बाप को भर पेट रोटी कभी जीते जी ,*
*आज लगाते उसको भंडारे मरने के बाद देखा ll*
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*_दे के समाज की दुहाई ब्याह दिया था जिस बेटी को जबरन बाप ने,_*
*_आज पीटते उसी शौहर के हाथों सरे बाजार देखा है ।_*
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*मारा गया वो पंडित बेमौत सड़क दुर्घटना में यारों ,*
*जिसे खुद को काल सर्प,तारे और हाथ की लकीरों का माहिर लिखते देखा है*
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*_जिस घर की एकता की देता था जमाना कभी मिसाल दोस्तों_*
*_आज उसी आँगन में खिंचती दीवार को देखा है।_*
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*बंद कर दिया सांपों को सपेरे ने यह कहकर,*
*अब इंसान ही इंसान को डसने के काम आएगा।*
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*_आत्महत्या कर ली गिरगिट ने सुसाइड नोट छोडकर,_*
*_अब इंसान से ज्यादा मैं रंग नहीं बदल सकता।_*
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*गिद्ध भी कहीं चले गए लगता है*
*उन्होंने देख लिया कि,इंसान हमसे अच्छा नोंचता है।*
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*_कुत्ते कोमा में चले गए,ये देखकर कि_*
*_क्या मस्त तलवे चाटते हुए इंसान को देखा है ।_*
*इस कविता को मैंने आप तक पहुंचाने में सिर्फ उंगली का उपयोग किया है और लिखने वाले को सादर नमन किया है
Saturday, 17 September 2016
गहरी बात:
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