Wednesday, 7 September 2016

न पकड़ सके दामन:

अब इस घर की आबादी मेहमानों पर है,
कोई आ जाए तो वक़्त गुज़र जाता है...

मूसलसल हों मुलाक़ातें तो दिलचस्पी नहीं रहती
बेतरतीब यारने बड़े रंगीन होते हैं...

कभी कभी सोचता हूँ किसी मुकम्मल जहाँ की तलाश में निकल पड़ूँ~
पर फिर सोचता हूँ मुकम्मल तो हम खुद भी नहीं
फिर ऐसे जहाँ की तलाश ही क्यों?

न हाथ थाम सके, न पकड़ सके दामन,
बड़े क़रीब से उठकर चला गया कोई

इंसान के अंदर जो समा जायें वो " स्वाभिमान "
और
जो इंसान के बहार छलक जायें वो " अभिमान "

तू किसी और के लिए होगा समुन्दर की मिसाल,
हम रोज़ तेरे साहिल से प्यासे गुज़र जाते !!!

No comments:

Post a Comment

डर हमको भी लगता है रस्ते के सन्नाटे से लेकिन एक सफ़र पर ऐ दिल अब जाना तो होगा

 [8:11 AM, 8/24/2023] Bansi Lal: डर हमको भी लगता है रस्ते के सन्नाटे से लेकिन एक सफ़र पर ऐ दिल अब जाना तो होगा [8:22 AM, 8/24/2023] Bansi La...