अब इस घर की आबादी मेहमानों पर है,
कोई आ जाए तो वक़्त गुज़र जाता है...
मूसलसल हों मुलाक़ातें तो दिलचस्पी नहीं रहती
बेतरतीब यारने बड़े रंगीन होते हैं...
कभी कभी सोचता हूँ किसी मुकम्मल जहाँ की तलाश में निकल पड़ूँ~
पर फिर सोचता हूँ मुकम्मल तो हम खुद भी नहीं
फिर ऐसे जहाँ की तलाश ही क्यों?
न हाथ थाम सके, न पकड़ सके दामन,
बड़े क़रीब से उठकर चला गया कोई
इंसान के अंदर जो समा जायें वो " स्वाभिमान "
और
जो इंसान के बहार छलक जायें वो " अभिमान "
तू किसी और के लिए होगा समुन्दर की मिसाल,
हम रोज़ तेरे साहिल से प्यासे गुज़र जाते !!!
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