Monday 19 September 2016

अज्ञानं ज्ञान की आखरी पराकाष्टा है:

सुकरात ने कहा कि जब मैं युवा था,
तो मैं सोचता था मैं बहुत कुछ जानता हूं;
फिर जब मैं बूढ़ा हुआ, प्रौढ़ हुआ तो मैंने जाना
कि मैं बहुत कम जानता हूं, बहुत कुछ कहां!
इतना जानने को पड़ा है!

मेरे हाथ में क्या है—कुछ भी नहीं,
कुछ कंकड़—पत्थर बीन लिए हैं!
और इतना विराट अपरिचित है अभी!
जरा सी रोशनी है

मेरे हाथ में—चार कदम
उसकी ज्योति पड़ती है—
और सब तरफ
गहन अंधकार है! नहीं,
मैं कुछ ज्यादा नहीं जानता;
थोड़ा जानता हूं।

और सुकरात
ने कहा कि जब
मैं बिलकुल मरने
के करीब आ गया,
तब मुझे पता
चला कि वह भी मेरा
वहम था कि
मैं थोड़ा जानता हूं।
मैं कुछ भी नहीं जानता हूं।
मैं अज्ञानी हूं।

जिस दिन
सुकरात ने यह कहा,
मैं अज्ञानी हूं,

उसी दिन
डेल्फी के मंदिर
के देवता ने घोषणा
की कि सुकरात
इस देश का
सबसे बड़ा ज्ञानी है।
जो लोग डेल्फी का
मंदिर देखने गए थे,
उन्होंने भागे आकर
सुकरात को खबर
दी कि डेल्फी के
देवता ने घोषणा की है
कि

सुकरात इस समय पृथ्वी का
सबसे बड़ा ज्ञानी है।
आप क्या कहते हैं?

सुकरात ने कहा:
जरा देर हो गई।

जब मैं जवान था तब कहा
होता तो मैं बहुत खुश होता।
जब मैं बूढ़ा होने
के करीब हो रहा था,
तब भी कहा होता,
तो भी कुछ प्रसन्नता होती।

मगर अब देर हो गई,
क्योंकि अब तो मैं जान चुका
कि मैं कुछ भी नहीं जानता हूं।

जो यात्री डेल्फी
के मंदिर से आए थे,
वे तो बड़ी बेचैनी में
पड़े कि अब क्या करें।
डेल्फी का देवता कहता है

कि सुकरात
सबसे बड़ा ज्ञानी है
और सुकरात खुद कहता है कि
मैं सबसे बड़ा अज्ञानी हूं;
मुझसे बड़ा अज्ञानी नहीं।
अब हम करें क्या?
अब हम मानें किसकी?
अगर डेल्फी के देवता की
मानें कि सबसे बड़ा ज्ञानी है
तो फिर इस ज्ञानी की
भी माननी चाहिए,
सबसे बड़ा ज्ञानी है।

तब तो बड़ी मुश्किल हो जाती है।
कि अगर इस सबसे बड़े ज्ञानी
की मानें तो देवता गलत हो जाता है।

वे वापस गए। उन्होंने डेल्फी के देवता
को निवेदन किया कि आप कहते हैं
सबसे बड़ा ज्ञानी है सुकरात और हमने
सुकरात से पूछा सुकरात उलटी बात कहता है।
अब हम किसकी मानें? सुकरात कहता है:
मुझसे बड़ा अज्ञानी नहीं।

डेल्फी के देवता ने कहा:
इसलिए तो हमने घोषणा की है
कि वह सबसे बड़ा ज्ञानी है।

ज्ञान की चरम स्थिति है:
ज्ञान से मुक्ति।
ज्ञान की आखिरी पराकाष्ठा है:
ज्ञान के बोझ को विदा कर देना।
फिर निर्मल हो गए।
फिर स्वच्छ हुए।
फिर विमल हुए।
फिर कोरे हुए।

           ओशो पद घुंघरू बाँध—(प्रवचन—छठवां)

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