Thursday, 2 August 2018

सहमी हुई है झोपड़ी, बारिश के खौफ से:


" जहाँ रौशनी की ज़रूरत हो चिराग वहीँ जलाया करो,
सूरज के सामने जलाकर उसकी औकात ना गिराया करो...!"
सहमी हुई है झोपड़ी, बारिश के खौफ से,
महलों की आरज़ू है, कि बरसात तेज हो..
"मुझ को थकने नहीं देता ये ज़रूरत का पहाड़
मेरे बच्चे मुझे बूढ़ा नहीं होने देते"
रोज़ वही इक कोशिश ज़िंदा रहने की,
मरने की भी कुछ तैयारी किया करो
हम बेक़सूर लोग भी बड़े दिलचस्प होते हैं
शर्मिंदा हो जाते हैं ख़ता किए बग़ैर भी
: ठहाके छोड़ आये हैं अपने कच्चे घरों मे हम,
रिवाज़ इन पक्के मकानों में बस मुस्कुराने का है।
मंज़िलों की बातें तो ख़्वाब जैसी बातें हैं
उम्र बीत जाती है रास्ता बनाने में
हर मुलाक़ात पे सीने से लगाने वाले
कितने प्यारे हैं मुझे छोड़ के जाने वाले
इक बार उस ने मुझ को देखा था मुस्कुरा कर
इतनी सी है हक़ीक़त बाक़ी कहानियाँ हैं
वो दूर था तो बहुत हसरतें थीं पाने की
वो मिल गया है तो जी चाहता है खोने को

1 comment:

  1. Beautiful. Aaj ek mitr ney ek Whatsap post share kiya jisme aapki is kavitha key doh line hain bas. 'Sehmi hui Hain jhopdi...tez ho'!

    Mann kiya ki Google karke check karoo yeh kis shaarar ki khayal hain aur aap ka yeh blog post dikh gaya.

    Bahut khoob!

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