Sunday, 11 September 2016

सोच बदलो:

कुछ ऐसे हो गए हैं,इस दौर के रिश्ते
जो आवाज़ तुम ना दो,तो बुलाते वो भी नहीं

सोच बदलो
समाज खुदबखुद बदल जाएगा

सारा जहाँ मरीज़, मरज़ भी है ला-इलाज
पहचाने कौन दर्द दवा की किसे ख़बर

तबीबों यही आरज़ू है मुझे,
सर-ए-दाग़ पर पा-ए-मारहम्म न हो।

मूसलसल हों मुलाक़ातें तो दिलचस्पी नहीं रहती
बेतरतीब यारने बड़े रंगीन होते हैं...

दुनिया ने दिल दुखाने में कसर ना करी...
मैंने माफ़ किया.......... और ख़ुशियों से झोली भर ली।

इत्तेफाकन जो हँस लिए थे कभी...
इंतकामन उदास रहते हैं...

चाकू,खंजर,तीर और तलवार लड़ रहे थे
कि कौन ज्यादा गहरा घाव देता है,

शब्द पीछे बैठे मुस्कुरा रहे थे।

वहाँ से एक पानी की बूँद ना निकल सकी फ़राज़,,,,
तमाम उम्र जिन आँखो को हम झील कहते रहे !!

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