"खुशीयां बटोरते बटोरते उमर गुजर गई ,पर खुश ना हो सके,_
एक दिन एहसास हुआ ,खुश तो वो लोग थे जो खुशीयां बांट रहे थे.।
ज्यादा बोझ लेकर चलनें वाला अक्सर डुब ज़ाता है,
चाहे वो "सामान" का हो या "अभीमान" का हो !!
हर ज़र्रा आईने में
ख़ुद को सूरज लगता है
जीस हाथ में हम फुल दे आये थे,
सुना है,
उसी हाथ का पत्थर,
मेरी तलाश में है।
जिनके दुखों की हद नहीं होती,
उनके हौसलों की भी हद नहीं होती..!
हर ज़र्रा आईने में
ReplyDeleteख़ुद को सूरज लगता है
- आशीष नैथानी '
ये मेरा शेर है सर. कहाँ से उठा लिए ??