क़लम में ज़ोर जितना है जुदाई की बदौलत है
मिलन के बाद लिखने वाले लिखना छोड़ देते हैं
न होता हिज्र तो कलम के परवाने कहाँ जाते
और कुछ नहीं तो ये शायरी के अफसाने कहाँ जाते
तुम फिर उसी अदा से अंगड़ाई ले के हँस दो,
आ जाएगा पलट कर गुज़रा हुआ ज़माना !!
कोशिश न कर खुश सभी को रखने की,
कुछ लोगों की नाराजगी भी जरूरी है,
चर्चा में बने रहने के लिए
हमसे मजबूर का गुस्सा भी अजब बादल है,
अपने ही दिल से उठे, अपने ही दिल पर बरसे |
फ़ासला इतना न रखना था,
ख़ुदा ..!
इस ज़मीं को आसमाँ देते हुए ..
अब तलक तो कम न कर पाए ज़मीं के दर्द को ..
तजरबे जो आसमाँ के चाँद-तारों पर हुए ..
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