Sunday, 28 August 2016

मुझ से हर बार नज़र चुरा लेता है:

मुझ से हर बार वो नजरें चुरा लेता है फ़राज़ ...
मैंने कागज पर भी बना के देखीं है आँखें उसकी !!!!

धडकनों को कुछ तो काबू में कर ए दिल
अभी तो पलकें झुकाई है मुस्कुराना अभी बाकी है

तेरे आने की क्या उमीद मगर
कैसे कह दूँ कि इंतिज़ार नहीं

"इल्ज़ाम तो हर हाल में
काँटों पे ही लगेगा,
ये सोचकर अक्सर फूल भी
चुपचाप ज़ख्म दे जातें हैं !!"

हाथों में पत्थर नही फिर भी चोट देती है...
ये ज़बान भी कमाल है ...
अच्छे अच्छो के घरौंदे तोड़ देती है

सुन कर तमाम रात मेरी दास्तान ए ग़म,
बोले तो सिर्फ ये के तुम बोलते बहुत हो

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