तुम तक़ल्लुफ को भी इखलास समझते हो फ़राज़,
दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलाने वाला
क़लम में ज़ोर जितना है जुदाई की बदौलत है
मिलन के बाद लिखने वाले लिखना छोड़ देते हैं
ये कलम भी बहुत दिलजली है।
जब जब भी मुझे दर्द हुआ है ये खूब चली है।..
भेज दी तस्वीर अपनी उन को ये लिख कर
आप की मर्ज़ी है चाहे जिस नज़र से देखिए
हवा ही ऐसी चली है हर एक सोचता है
तमाम शहर जले एक मेरा घर न जले
ख़ुदा हम को ऐसी ख़ुदाई न दे
कि अपने सिवा कुछ दिखाई न दे
न इतना हंसो कि उस शोर में
सदा सिसकियों की सुनाई न दे
ख़ुदा ऐसे एहसास का नाम है
रहे सामने और दिखाई न दे
ख़तावार समझेगी दुनिया तुझे
तू इतनी ज़ियादा सफ़ाई न दे
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