Sunday, 21 August 2016

संग~ए~मरमर:

संग~ए~मरमर से तराशा खुदा ने तेरे बदन को, बाक़ी जो पत्थर बचा उससे तेरा दिल बना दिया…
दर्द की बारिशों में हम अकेले ही थे, जब बरसी ख़ुशियाँ न जाने भीड़ कहां से आई...

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डर हमको भी लगता है रस्ते के सन्नाटे से लेकिन एक सफ़र पर ऐ दिल अब जाना तो होगा

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