Thursday, 7 April 2016

विनम्र सबके साथ रहिये:

'शब्द' मुफ्त में मिलते हैं। परंतु उनके चयन पर 'निर्भर' करता हैं कि उसकी 'कीमत', 'मिलेगी' या 'चुकानी' पड़ेगी।।

“बुतख़ाना ओ काबा ख़ानए बंदगी अस्त,
  नाक़ूस ज़दन तरान ए बंदगी अस्त ,
  मेहराब ओ कलीसा ओ तस्बीह ओ सलीब ,
  हक्का कि हमा निशान ए बंदगी अस्त”

विनम्र तो सबके साथ रहें, लेकिन घनिष्ठ कुछ एक के साथ ही।

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