Tuesday, 19 April 2016

अपने हिस्से का दीया खुद ही जलाएं:

ख्वाहिश से नहीं गिरते हैं फल झोली में।
वक़्त की साख को मेरे दोस्त हिलाना होगा।।
कुछ नहीं होगा अंधेरों को बुरा कहने से।
अपने हिस्से क़ा दीया ख़ुद ही जलाना होगा।।

आसमाँ मेरी नज़र में कूबा—ए—तारीक है
गर न देखूँ तुझ कूँ अय चश्म—ए—चराग़—ए—ज़िन्दगी

करें किसका एतबार यहाँ सब अदाकार ही तो हैं,
और गिला भी किससे करें सब अपने यार ही तो हैं!

उस्ताद वह नहीं जो आरम्भ करता है, बल्कि वह है जो पूर्ण करता है।

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